जगमग दीप जलाता हूं….
अंधकार के साये में जब, खुद को घिरता पाता हूं।
तब मन में नव आशाओं के, जगमग दीप जलाता हूं॥
दर्द दबाकर, लहुलुहान पैरों के दुखते छालों का।
लिये हौसला कंटक पथ पर, चलता जाता हूं॥
जब भी दर्द उतरता है, मेरी आंखो में पानी बनकर।
कोई ओज गीत गाकर , नव संबल पाता हूं॥
दर किनार कर हर प्रतिक्रिया, अनदेखी कर हर अंगुली।
लक्ष शिखर का ध्येय धरे, बस आगे बढता जाता हूं॥
करता हूं स्वयं मूल्यांकन, मेरे अपने कर्मों का में।
हर गलती से सीख नयी ले, नव पथ कदम बढाता हूं॥
सीखा नही झुकाना ये सर, झूठ दंभ के आगे मैने।
लिये सत्य दीपक आलौकिक, निशा पार कर जाता हूं॥
अंधकार के साये में जब, खुद को घिरता पाता हूं।
तब मन में नव आशाओं के, दीप जलाता हूं……
सतीश बंसल
सुंदर रचना