कविता

जगमग दीप जलाता हूं….

अंधकार के साये में जब, खुद को घिरता पाता हूं।
तब मन में नव आशाओं के, जगमग दीप जलाता हूं॥

दर्द दबाकर, लहुलुहान पैरों के दुखते छालों का।
लिये हौसला कंटक पथ पर, चलता जाता हूं॥

जब भी दर्द उतरता है, मेरी आंखो में पानी बनकर।
कोई ओज गीत गाकर , नव संबल पाता हूं॥

दर किनार कर हर प्रतिक्रिया, अनदेखी कर हर अंगुली।
लक्ष शिखर का ध्येय धरे, बस आगे बढता जाता हूं॥

करता हूं स्वयं मूल्यांकन, मेरे अपने कर्मों का में।
हर गलती से सीख नयी ले, नव पथ कदम बढाता हूं॥

सीखा नही झुकाना ये सर, झूठ दंभ के आगे मैने।
लिये सत्य दीपक आलौकिक, निशा पार कर जाता हूं॥

अंधकार के साये में जब, खुद को घिरता पाता हूं।
तब मन में नव आशाओं के, दीप जलाता हूं……

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.

One thought on “जगमग दीप जलाता हूं….

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सुंदर रचना

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