नकली फूल….
नकली फूल, बनावट की खुशबु का है व्यापार
गुलशन की क्यूं फिक्र करे, व्यापारी सत्तादार।
होने लगे आदर्श कलंकित, हर दिन बारंबार
बिकता है अब झूठ लगाकर, बोली सरे बाजार॥
होने लगा पतन कुछ ज्यादा, वाणी लगी उगलने आग
लगा रही उजले दामन पर, नीयत कैसे कैसे दाग।
उजले तन और काले मन है, मुश्किल है पहचान बडी
आस्तीन में लगे हैं पलने, खतरनाक जहरीले नाग॥
लगने लगी है तोहमत अब युग पुरुषों पर, हैरानी है
इस युग में सच्चाई की बातें, कितनी बेमानी है।
थाम कलेजा देख रही है, हैरत भरी निगाहों से मां
राष्ट्रभक्ति के नाम पे हो रही, कैसी ये मनमानी है॥
मेरी वो गंगा जमनी तहजीब, बहुत सदमे में है
मेरी रंगों की होली और ईद बहुत सदमे में है।
रोती हूं बेहाल बहुत हूं, अपनों के ही छल से मैं
मेरी मानव सदभावों की, उम्मीद बहुत सदमे में है॥
सतीश बंसल
बहुत सुंदर !