ग़ज़ल
हिस्सा-ए-बाज़ार न बन,
हिम्मत रख लाचार न बन
कुछ अपनी भी सोचा कर,
सबका खिदमतगार न बन
दुश्मन भी रख थोड़े से,
सारी दुनिया का यार न बन
दिल में भी रख कुछ बातें,
चलता फिरता अखबार न बन
सबकी अपनी मर्जी है,
लोगों का ठेकेदार न बन
रिश्ते भी कमा ले थोड़े से,
दौलत का पहरेदार न बन
प्यार का मरहम लगा सबको,
नफरत का हथियार न बन
— भरत मल्होत्रा।