राजनीति

पुरस्कार वापसी का सच

प्रख्यात अन्तर्राष्ट्रीय लेखिका तसलीमा नसरीन ने दिनांक २९.१०.१५ को अपने एक बयान में कहा है कि पहले मुझे लग रहा था कि सच में साहित्यकार पुरस्कार वापिस करके अपने दुख की अभिव्यक्ति कर रहे हैं, परन्तु अब भारत में जिस तरह से पुरस्कार वापिस किए जा रहे हैं और जो कारण दिया जा रहा है, सच में ये सब भारत सरकार के विरोधियों का एक षड्यंत्र है, ताकि भारत यूनाइटेड नेशन में स्थाई सदस्य न बन सके।
तसलीमा की बातों में गहराई और सच्चाई है। इन तथाकथित बुद्धिजीवियों को देश के वातावरण में कथित सांप्रदायिकता और असहिष्णुता से बहुत तकलीफ है, मानो भारत ईरान, सऊदी अरब, पाकिस्तान या बांग्ला देश बन गया हो। पिछले सप्ताह ईरान में दो कवियों को ९९ कोड़े लगाए जाने की सज़ा सिर्फ इसलिए सुनाई गई कि इन कवियों ने गैर मर्द और गैर औरत से हाथ मिलाये थे। इन कवियों के नाम हैं – फ़ातिमे एखटेसरी और मेहंदी मूसावी। पिछले शनिवार को ढाका में हत्या के शिकार लेखक और ब्लागर अविजित राय के साथ काम करनेवाले एक प्रकाशक की कट्टरपंथियों ने गला काट कर हत्या कर दी। वहीं इससे कुछ घंटे पहले ही दो सेक्यूलर ब्लागरों और एक अन्य प्रकाशक पर जानलेवा हमला हुआ। दुनिया भर के अखबारों में घटना की चर्चा हुई, तस्वीरें भी छपीं, लेकिन भारत के इन बुद्धिजीवियों ने संवेदना या निंदा का एक शब्द भी उच्चारित किया। पुरस्कार वापस करने वाले तमाम बुद्धिजीवी बुजुर्ग हैं। इन सबने इमरजेन्सी देखी है। तब इन्दिरा गांधी ने सारे मौलिक अधिकार समाप्त कर दिए थे। उस समय न किसी को जुलूस निकालने का अधिकार था, न सभा करने का, न स्वतंत्र चिन्तन का, न बोलने का और न ही लिखने का। कुलदीप नय्यर की पुस्तक ‘The Judgement’ इन्दिरा गांधी, कांग्रेस और इन सत्तापोषित बुद्धिजीवियों का कच्चा चिट्ठा है। किस तरह संजय गांधी ने परिवार नियोजन के नाम पर नाबालिग बच्चों की भी नसबन्दी कराई थी, कम से कम चांदनी चौक, जामा मस्ज़िद और तुर्कमान गेट के वासिन्दे क्या अबतक भूल पाए हैं? ये बुद्धिजीवी उस समय इन्दिरा गांधी के सम्मान में कसीदे काढ़ रहे थे। १९८४ में हजारों सिक्खों को कांग्रेसियों ने मौत के घाट उतार दिया, बिहार के जहानाबाद में लालू के राज के दौरान दलितों का नरसंहार हुआ, भागलपुर में भयंकर दंगा हुआ, गोधरा में सन् २००२ में साबरमती एक्स्प्रेस की बोगियों में आग लगाकर सैकड़ों तीर्थयात्रियों को जिन्दा जला दिया गया, कश्मीर में हजारों हिन्दुओं की हत्या की गई, बहु-बेटियों से बलात्कार किया गया और अन्त में पूरी कश्मीर-घाटी के हिन्दुओं को भगाकर देश के दूसरे भागों में शरणार्थी बना दिया गया; इन बुद्धिजीवियों ने चूं तक नहीं की। देश का सांप्रदायिक माहौल खराब करने के लिए श्रीनगर, कलकत्ता, दिल्ली, चेन्नई, बंगलोर इत्यादि शहरों में विज्ञापित करके सड़क के बीचोबीच मीडिया के कैमरों के सामने ‘बीफ’ खाया और परोसा गया; इन बुद्धिजीवियों ने विरोध का एक स्वर भी नहीं निकाला।
सम्मान वापस करने वाले — सब-के-सब चिर काल से राष्ट्रवादियों का विरोध करते आ रहे हैं। इन्हें सम्मान अच्छे लेखन के लिए नहीं, बल्कि राष्ट्रवाद का विरोध और चाटुकारिता के लिए मिला है। ये सभी २००२ से ही नरेन्द्र मोदी का विरोध करते आए हैं। ये वही लेखक हैं, जिन्होंने अमेरीका को पत्र लिखा था कि नरेन्द्र मोदी को वीसा न दिया जाय। चीन, पाकिस्तान, सी.आई.ए. और नेहरू खानदान के लिए काम करने वाले इन (अ)साहित्यकारों ने मोदी को रोकने के लिए पश्चिमी जगत से भी हाथ मिलाया, ईसाई लाबी को भी सक्रिय किया। वाशिंगटन पोस्ट, टाइम्स आदि अनेक पत्र-पत्रिकाओं में गत आम चुनाव के पहले मोदी के विरोध में सैकड़ों लेख लिखवाए, लेकिन भारत की जनता ने दिग्भ्रमित हुए बिना मोदी को प्रधान मंत्री बना दिया। २०१४ के जनादेश को न इन (अ)साहित्यकारों ने स्वीकारा और न इनके राजनीतिक आकाओं ने। ये सभी सियासी लड़ाई हारने के बाद प्रधान मंत्री के खिलाफ़ दुष्प्रचार के जरिए लड़ाई लड़ने की योजना पर काम कर रहे हैं। दूसरों को असहिष्णु बताने वाले ये (अ)साहित्यकार मोदी के प्रति पूर्वाग्रह और असहिष्णुता के सबसे बड़े शिकार हैं। ये २०१४ के जनादेश को भी हजम नहीं कर पा रहे हैं। सब तरफ से निराश होने के बाद इनके आका राज्यसभा में अपने बहुमत के कारण किसी भी विकास के एजेन्डे का विरोध करने पर आमादा हैं, तो ये वो पुरस्कार, जिसके योग्य ये कभी थे ही नहीं, वापिस करके कम्युनिस्टों, कांग्रेसियों, आतंकवादियों, सांप्रदायिक तत्त्वों और सुरक्षा परिषद में भारत की स्थाई सदस्यता का विरोध करने वाली अन्तर्राष्ट्रीय ताकतों का समर्थन कर रहे हैं। इन (अ)साहित्यकारों का न लोकतंत्र में विश्वास है, न सर्वधर्म समभाव, न शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व और ना ही धार्मिक और वैचारिक सहिष्णुता में तनिक भी आस्था है। अबतक सत्ता की मलाई चाट रहे ये (अ)साहित्यकार अपनी दूकान बंद होने की संभावना के कारण बौखलाहट में विक्षिप्त हो गए हैं।

बिपिन किशोर सिन्हा

B. Tech. in Mechanical Engg. from IIT, B.H.U., Varanasi. Presently Chief Engineer (Admn) in Purvanchal Vidyut Vitaran Nigam Ltd, Varanasi under U.P. Power Corpn Ltd, Lucknow, a UP Govt Undertaking and author of following books : 1. Kaho Kauntey (A novel based on Mahabharat) 2. Shesh Kathit Ramkatha (A novel based on Ramayana) 3. Smriti (Social novel) 4. Kya khoya kya paya (social novel) 5. Faisala ( collection of stories) 6. Abhivyakti (collection of poems) 7. Amarai (collection of poems) 8. Sandarbh ( collection of poems), Write articles on current affairs in Nav Bharat Times, Pravakta, Inside story, Shashi Features, Panchajany and several Hindi Portals.

One thought on “पुरस्कार वापसी का सच

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    बहुत दिनों से उलझी बातें स्पष्ट हुई
    धन्यवाद आपका

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