धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

वैदिक ज्ञान अमृततुल्य एवं मनुष्य की सर्वांगीण उन्नति का आधार

ओ३म्

 

ईश्वर की कृपा से हमें यह मनुष्य जीवन मिला है। इस जीवन को जीने के लिए हमें जीवन देने वाले ईश्वर, जीवात्मा, मनुष्य व अन्य जीवयोनियों की उत्पत्ति के कारण, उद्देश्य और लक्ष्य को भी जानना है। इन सब प्रश्नों के सत्य-सत्य उत्तर कहां से मिल सकते हैं? हमनें इसका अध्ययन किया है और इस आधार पर कह सकते हैं कि इनके उत्तर केवल वेद और वैदिक साहित्य में ही मिलते हैं। वेदों से इतर जो ज्ञान उपलब्ध होता है उसमें अनेक कमियां, त्रुटियां एवं भ्रान्तियां हैं जिससे जिज्ञासु जन भ्रमित होकर अपना जीवन नष्ट कर लेते हैं तथापि मृत्यु आने तक भी उन्हें सत्य ज्ञान प्राप्त नहीं होता। यह भी कहना उचित होगा कि चाहे कोई वेद को माने या न मानें, परन्तु यदि उन्हें ईश्वर, जीवात्मा, प्रकृति, मनुष्य जन्म का कारण, मनुष्य जीवन का उद्देश्य, इसका लक्ष्य, ईश्वर व मोक्ष प्राप्ति के साधनों व उपायों को जानना है तो उन्हें वेद और वैदिक साहित्य की ही शरण लेनी होगी। सत्य ज्ञान की प्राप्त के लिए यह आवश्यक है कि सत्य ज्ञान जहां से भी मिले उसे विनम्रता पूर्वक प्राप्त कर लेना चाहिये। यदि हम स्वमत के मिथ्या अभिमान, अविद्या, स्वार्थ, हठ व दुराग्रह आदि में फंसे रहेंगे तो हम सत्य को प्राप्त नहीं हो पायेंगे जिससे हमारी बहुत भारी क्षति होगी।

 

जीवन विषयक जिन प्रश्नों को प्रस्तुत किया गया है, उनके उत्तर क्या हैं? ईश्वर क्या है, इसका उत्तर है कि ईश्वर एक सत्य, चित्त आनन्दस्वरूप, निराकार, सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान, अनादि, नित्य, सर्वज्ञ, अजर, अमर आदि गुणों से युक्त सत्ता है जो इस ब्रह्माण्ड में प्रत्येक स्थान पर अति सूक्ष्म रूप में विद्यमान है। यह चेतन तत्व है इस कारण से इसमें ज्ञान भी है और यह कर्म क्रियायें भी कर सकती है। यह जीवात्मा को प्रेरणा कर सकती है और जड़ सूक्ष्म कारण प्रकृति को प्रेरणा द्वारा अपने विज्ञान से पूर्व कल्पों के समान सृष्टि आदि की रचना भी कर सकती है। जीवात्मा एक सूक्ष्म चेतन तत्व है जिसमें ज्ञान कर्म तो है परन्तु आनन्द का अभाव है। यह आनन्द वा सुख इसे ईश्वर के सान्निध्य तथा किंचित मात्रा में प्रकृति के सान्निध्य में जाकर भोगों को भोगने पर भी मिलता है। प्रकृति अपने मूल कारण रूप में अति सूक्ष्म है परन्तु ईश्वर जीवात्मायें मूल प्रकृति से भी सूक्ष्म है। इस प्रकार प्रकृति ईश्वर जीव की अपेक्षा से किंचित स्थूलतर है। ईश्वर अपनी प्रेरणा द्वारा प्रत्येक कल्प के आरम्भ में इस मूल प्रकृति को वर्तमान के समान सृष्टि का रूप देता है। कार्य सृष्टि को जानकर जीवात्मा अर्थात् मनुष्य भी इससे अपने प्रयोजन के अनुसार किंचित परिवर्तन आदि करता रहता है। मनुष्य जन्म का कारण जानने के लिए जीवात्मा के स्वरूप को जानना होगा। जीवात्मा एक अनादि, नित्य, सूक्ष्म, अल्प परिणाम, एकदेशी, अल्पमात्रा में संस्कारार्जित ज्ञान स्वभाविक ज्ञान से युक्त है। अनादि, अनुत्पन्न, नित्य, अविनाशी अमर होने के कारण यह अनन्त काल से जन्म मृत्यु के बन्धन में बंधी हुई है। यह मनुष्य योनि में जो कर्म करती है उसके अनुसार मृत्योपरान्त इसको अनेक योनियों में किसी एक में कर्मानुसार नया जन्म मिलता है। कर्मों का भोग कर लेने पर इसे मनुष्य योनि मिलती है जिसमें यह परा अपरा दोनों विद्याओं को प्राप्त कर अर्जित ज्ञानानुसार कर्म करके जन्म मृत्यु से छूट सकता है। जन्म मृत्यु से छूटने का पूरा ज्ञान साधन वेद वैदिक साहित्य में उपलब्ध है। महर्षि दयानन्द अन्य ़ऋषियों का जीवन भी सुख मोक्ष प्राप्ति के लिए किये जाने वाले साधनों का उदाहरण हैं। कर्मानुसार फल भोगने के लिए ईश्वरीय विधान के अनुसार बार-बार जीवात्मा के मनुष्य आदि अनेक जन्म होते हैं। मनुष्य जीवन का उद्देश्य परा अपरा विद्याओं का ज्ञान प्राप्ति, बुरे कर्मों का त्याग, सद्कर्मों का संग्रह, आत्मा की उन्नति, ईश्वर का ज्ञान योगादि साधनों को करके उसकी प्राप्ति अन्तिम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति है। मोक्ष का अर्थ है जन्म मृत्यु के चक्र से बहुत लम्बे समय 31 नील 10 खरब 40 अरब वर्षों तक के लिए जन्म मरण से अवकाश। जीवन की उन्नति मोक्ष के साधन किसी आचार्य से वेदाध्ययन सभी विद्याओं की प्राप्ति, अध्यापन, योगाभ्यास, सन्ध्या यज्ञ, परोपकारमय सद्कर्म ध्यान समाधि है। इन सब अन्य विषयों का ज्ञान वेद वैदिक साहित्य के अध्ययन से ही सम्भव है। किसी मत सम्प्रदाय की धर्म पुस्तक से इन विषयों का ज्ञान नहीं हो सकता क्योंकि वह भ्रान्तियों से भरी हैं। उनकी मान्यतायें एवं सिद्धान्त भी भ्रान्तियों से युक्त है।

 

अतः विद्या व सद्ज्ञान की प्राप्ति के लिए वैदिक धर्म व वेद की शरण में सभी को आना ही होगा अन्यथा जीवात्मा व जीवन की उन्नति असम्भव है। आईये, वेदों की ओर लौटें और अपने मनुष्य जीवन को सफल बनायें।

 

मनमोहन कुमार आर्य