गीत
लेने का मौसम चला गया आया है वापिस देने का
मौका है बहती गंगा में हाथ अपने भी धोने का
कह दे पाकिस्तान से कोई पछताना ना तू कल को
कश्मीर जो हड़पा है तूने लौटा दे तू वो अब हमको
हम भी हैं खुद्दार बहुत ही मुफ्त में ना कुछ भी लेंगे
बदले में सब आतंकवादी तेरे तुझको दे देंगे
उनको कंधे पर बिठलाकर खूब नाचना जी भर के
भस्मासुर खुद ही मरता है हाथ रखके अपने सर पे
फल तो मिलता है औरों की राह में काँटे बोने का
मौका है बहती गंगा में हाथ अपने भी धोने का
नेता जी हिसाब दो ज़रा देश के दिल के छालों का
हिम्मत है तो लौटा दो वो सारा धन घोटालों का
पत्नी बेटों का नाम जो स्विस बैंक में खाते हैं,
लौटाओ उद्योगपतियों से जितनी मिली सौगातें हैं
मरे हुओं का कफन बेच के जितने दाम कमाएं हैं
निर्दोषों की जान लौटा दो जो तुमने मरवाएं है
नहीं तो नाटक बंद करो ये झूठ-मूठ के रोने का
मौका है बहती गंगा में हाथ अपने भी धोने का
अभिनेताओ लौटाओ वो प्यार जो हमसे पाया है
बंगले, गाड़ी, नौकर-चाकर जो भी हमसे कमाया है
तुम्हें बिठाकर मंदिर में भगवान बनाकर पूजा है
गाली हमें, तारीफ गैर की ये क्या तुमको सूझा है
तुम्हारी एक झलक की खातिर घंटों लगे कतारों में
पहले शो का टिकट लिया चाहे वो मिला हज़ारों में
वो भी पीतल ही निकले जिनको समझा सोने का
मौका है ये बहती गंगा में हाथ अपने भी धोने का
लेने का मौसम चला गया आया है वापिस देने का
मौका है बहती गंगा में हाथ अपने भी धोने का
— भरत मल्होत्रा।