कविता

मां मुझे भी आतिशबाजी दो ना…

रोशन आसमान को देखकर
गरीब का बच्चा बोला
मां मुझे भी आतिशबाजी दो ना।

आसमान की रोशनी को देखो
चकाचौध करती उसकी छवि को देखो
देखो तो हर तरफ उजाले ही उजाले है
कहीं जगमग फुलझडी
कही अनार मतवाले है
बमों की धमक ने तो धमाल मचा रखा है
चरखी ने घूम कर क्या हाल मचा रखा है
झिलमिलाती उन लडियों को देखो ना…
मां मुझे भी आतिशबाजी दो ना…..

मां तुमने देखा है
दुकाने कितनी सुन्दर सजी हैं
पूरी मार्किट जैसे दुल्हन बनी है
नये कपडे सबके मन को लुभा रहे है
मेरे सारे दोस्त नई चीजे ला रहे है
चलो हम भी चलते है
इन फटे कपडो में, बहुत शर्म आती है
चलो हम भी नये बदलते है
कुछ भी सोचो मत मां, चलो ना…
मां मुझे भी आतिशबाजी दो ना….

दीवाली है
आज तो सारा जहां रोशन है
आज तो सब खुशियों मे झूम रहे है
आपके चेहरे पर क्यूं शिकन है
उन्होने भाषण में कहा था
अब कोई गरीब नही रहेगा
अच्छे दिन आयेगे, खुशियों का दरिया बहेगा
मां फिर तेरी आंखें क्यूं नम है
और हमारे घर में रोशनी क्यूं कम है
देखो सबके घर जगमग है
तुम भी रोशन करो ना….
मां मुझे भी आतिशबाजी दो ना….

डबडबाते आंसू रोक कर, मां बोली
बेटा
इस चकाचौंध को देखकर ही खुश रहो
इसके आगे और कुछ मत कहो
जिसकी थाली और पेट
दोनों खाली है
उनकी तो होली , बेरंग है
और काली दीवाली है….

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.