लघुकथा : छोटी बहू
बेटी की विदाइगी के समय आकाश की रुलाई फूट पड़ी और सुबकते हुए अपने समधी जी से बोला –भाई साहब ,मेरी बेटी को सब आता है पर खाना बनाना नहीं आता है ।
समधी जी ने सहजता से कहा -कोई बात नहीं –आपने सब सिखा दिया ,खाना बनाना हम सिखा देंगे ।
सरस्वती के पुजारी समधी जी आज फूले नहीं समा रहे थे घर में पढी -लिखी बहू जो आ गई थी । जो भी मिलता कहते -भई ,पाँच -पाँच बेटियाँ विदा करने के बाद घर में एक सुघड़ बेटी आई है ।
शाम का समय था कमरे मेँ बिछे कालीन पर एक चौकी रखी थी जिस पर चाय -नाश्ता सलीके से सजा था । नन्द -देवर अपनी भाभी को घेरे बैठे थे और इंतजार मेँ थे कि कब घर की बड़ी बहू आए औए चाय पीना शुरू हो ।
कुछ मिनट बीते कि जिठानी जी धम्म से कालीन पर आकर बैठ गईं और बोली -हे राम ,मैं तो बुरी तरह थक गई ,मुझसे कोई उठने को न कहना । और हाँ छोटी बहू!मुझे एक कप चाय बना दो और तुम लोग भी शुरू करो ।
चाय के घूँट भरने शुरू भी नहीं हुये थे कि छोटे बेटे को ढूंढते हुये ससुर जी उस कमरे मेँ आ गए और बोले -रामकृष्ण तो यहाँ नहीं आया ?
बड़ी बहू ने जल्दी से सिर पर पल्ला डाल घूँघट काढ़ लिया । छोटी बहू तुरंत खड़ी हो गई और एक कुर्सी खींचते हुये बोली -बाबू जी आप जरा बैठिए मैं आपके लिए चाय बनाती हूँ । भैया जी तो यहाँ नहीं आए ।
-न बहू ,मैं जरा जल्दी मेँ हूँ । चाय रहने दे ।
फिर बड़ी बहू से बोले -,मैं चाहता हूँ अब से तुम भी पर्दा न करो ,नई बहू आजकल के जमाने की है । अब कोई पर्दा -सर्दा नहीं करता ।
-पहले जब मैं पर्दा नहीं करना चाहती थी तब मुझसे पर्दा कराया गया ,अब आदत पड गई तो कहा जा रहा है कि पर्दा न करो । अब तो मैं पर्दा करूंगी ।
नई नवेली बहू आश्चर्य से जिठानी जी की तरफ देख रही थी –यह कैसा पर्दा !बड़ों के प्रति जरा भी शिष्टता या आदर भावना नहीं !
ससुर जी बड़ी बहू के रवैये से खिन्न हो उठे । उसने नई दुल्हन का भी लिहाज न किया । अपना सा मुँह लेकर चले गए ।
उनके जाते ही एक वृद्धाने कमरे मेँ प्रवेश किया ।
–यहाँ कोई आया था ?जासूस की तरह पूछा ।
-हाँ !बाबू जी आए थे । जिठानी जी ने कहा ।
-बात कर रहे थे ?
-हाँ –बाबा जी मम्मी से कुछ कह रहे थे और चाची जी से भी बातें की थीं । चाची जी से तो बात करना सबको अच्छा लगता है । हमको भी अच्छा लगता है । वे हैं ही बहुत प्यारी -प्यारी। ऐसा कहकर बच्चे ने छोटी बहू का हाथ चूम लिया ।
-छोटी बहू ,अभी तुम नई -नई हो । ससुर से बात करना ठीक नहीं ।भौं टेढ़ी करते हुये वृद्धा बोली ।
– यदि मुझसे कोई बात पूछे ,उसका भी जबाव न दूँ ?—–यह तो बड़ी अशिष्टता होगी !
दूसरे ही क्षण मेहमानों से भरे घर मेँ हर जुबान पर एक ही बात थी —
छोटी बहू बड़ी तेज और जबानदराज है ।
— सुधा भार्गव
यही बातें देख कर तो आज के युवा लड़के लड़कियन बागी हो रहे हैं .हज़ारों साल के पुराने विचार इकीसवी सदी से मैच नहीं होते ,और यही वजह है तलाक की .