लघुकथा

लघुकथा : पगार बनाम दान

“जय गुरुदेव”

दरवाजे पर हुंकार हुई और दरवाज़ा खुल गया। गृह स्वामिनी चरणों में लोटती सी अगवानी के लिए दौड़ी चली आई। ब्रह्मचारी बाबा दो डग पीछे हटे तब उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ। बेटे का मस्तक बाबा के चरणों में नवा कर उसके हाथ से सीधा दक्षिणा दिलवाया। गदगद हुए बाबा आशीर्वादों की झड़ी लगाते चले गए।

गेट के बाहर खड़े नत्थू जमादार भरी आँखों से उन्हें जाते देखता रहा अभी थोड़ी पहले ही तो गृह स्वामिनी ने बृहस्पति वार को पैसे नहीं देते कहते हुए उसे पगार देने से मना किया था।

— कविता वर्मा

कविता वर्मा

जन्म स्थान टीकमगढ़ वर्तमान निवास इंदौर शिक्षा बी एड , एम् एस सी पंद्रह वर्ष गणित शिक्षण लेखन कहानी कविता लेख लघुकथा प्रकाशन कहानी संग्रह 'परछाइयों के उजाले ' को अखिल भारतीय साहित्य परिषद् राजस्थान से सरोजिनी कुलश्रेष्ठ कहानी संग्रह का प्रथम पुरुस्कार मिला। नईदुनिया दैनिक भास्कर पत्रिका डेली न्यूज़ में कई लेख लघुकथा और कहानियों का प्रकाशन। कादम्बिनी वनिता गृहशोभा में कहानियों का प्रकाशन। स्त्री होकर सवाल करती है , अरुणिमा साझा कविता संग्रह में कविताये शामिल।

One thought on “लघुकथा : पगार बनाम दान

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    अच्छी लघु कथा ,अंधविश्वास ,डब्बल स्टैण्डर्ड और दुसरी तरफ मानसिक अत्याचार .

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