लघुकथा : पगार बनाम दान
“जय गुरुदेव”
दरवाजे पर हुंकार हुई और दरवाज़ा खुल गया। गृह स्वामिनी चरणों में लोटती सी अगवानी के लिए दौड़ी चली आई। ब्रह्मचारी बाबा दो डग पीछे हटे तब उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ। बेटे का मस्तक बाबा के चरणों में नवा कर उसके हाथ से सीधा दक्षिणा दिलवाया। गदगद हुए बाबा आशीर्वादों की झड़ी लगाते चले गए।
गेट के बाहर खड़े नत्थू जमादार भरी आँखों से उन्हें जाते देखता रहा अभी थोड़ी पहले ही तो गृह स्वामिनी ने बृहस्पति वार को पैसे नहीं देते कहते हुए उसे पगार देने से मना किया था।
— कविता वर्मा
अच्छी लघु कथा ,अंधविश्वास ,डब्बल स्टैण्डर्ड और दुसरी तरफ मानसिक अत्याचार .