कहानी — प्रश्न
गांव वाले चाचा की बेटी का निमंत्रण कार्ड जैसे ही आया मैं तो उछल पड़ी…. मन ही मन स्वप्न बूनने लगी कि चलो अब सभी गांव की पुरानी सहेलियों से मिलूंगी…… कितने बदल गए होंगे सब….. कहां जा पाती थी गांव में शादी के बाद … पापा शहर में रहते थे कभी कभार घंटे दो घंटे के लिए ही जाना हो पाता था…. पापा कहते थे बीमार हो जाओगी….. तुम्हारे बच्चे नहीं झेल पाएंगे गांव की गर्मी… आदि आदि……… पर अब खुश थी…..!
शादी में जाने की तैयारियां करने लगी…… कौन से रंग की साड़ी पहनूंगी…. उसपर मैचिंग चूड़ियाँ…… और लिपस्टिक…. लिपस्टिक से याद आया जब मैं गाँव गई थी और अपने होठों पर काफी कलर की लिपस्टिक लगाई थी….. तब चाची बड़े प्रेम से मेरे बगल में बैठते हुए कुछ चिंतित होते हुए पूछी थीं… रीना तोहार ओठवा करिया कइसे हो गइल बा…? ( रीना तुम्हारा ओठ काला कैसे हो गया है..? ) मैंने कहा चाची मेरा होठ काला नहीं हुआ.. ये लिपस्टिक का रंग आजकल के फैशन में है…….. फिर चाची ने कहा था कि रीना बाकिर इ तोहार लिपिस्टिक के रंग शोभत नइखे…… लिपिस्टिक लगा के करीया ओठ के लाल कइल जाला कि लाल ओठ के करिया कइल जाला.. ( ये तुम्हारा लिपस्टिक का रंग सुन्दर नहीं लग रहा है… लिपस्टिक लगाकर काले ओठ को लाल किया जाता है या लाल होठ को काला..) उसके बाद और इ का उदास रंग के साड़ी पहिर ली सुहागिन के लाल पीला पहिरे के चाहीं …..!
इसलिए मैं खूब चटक रंग की साड़ी , लाल लिपस्टिक , लाल हरी मैचिंग चूड़ियाँ……. और फिर विवाह में जाने के लिए दिन गिनने लगी..!
और फिर समाप्त हुई प्रतीक्षा की घड़ी…. गांव पहुंचते ही भव्य स्वागत…. कुछ देर के लिए तो मैं खुद को राजकुमारी महसूस करने लगी थी…!
फिर चाची मेरा नज़र उतारते हुए सबको ..सुनाते हुए कहने लगीं देखो तो रीना को ( मेरे घर का नाम रीना ) एतना दिन राजधानी में रहे के बादो बदली नहीं….. अउर इहाँ देखो इ सबको दू दिन शहर का गईं लगीं चिरइया कट बार कटा के अंग्रेजी छांटे….!
फिर सबसे बातें करते करते कब शाम हो गई पता ही नहीं चला और शुरू हो गया गाना बजाना ढोलकी के थाप पर…… बन्नी अपनी सुहाग मांगे डिबिए में………!
तभी मेरी नज़र मीना भाभी पर पड़ी जो कि हल्के वस्त्रों में लिपटी होठों पर कृत्रिम मुस्कान बिखेरते हुए पूरे वातावरण को संगीतमय कर रही थीं.!
अभी पिछले वर्ष ही तो भैया उन्हें श्वेत वस्त्रों का उपहार देकर सदा के लिए चले गए थे अपने इस सुंदर संसार को छोड़कर…!
बेचारी मीना भाभी को कितना प्रेम था रंगों से… भर भर मांग सिंदूर… कलाइयों में अठखेलियाँ करती सुन्दर सुन्दर रंग बिरंगी चूड़ियाँ… माथे की बिंदिया सब छीन ली गई थी मीना भाभी से….. नीयति ने तो उनके साथ क्रूर खेल खेला ही था… पर अपने कहां कम थे… कुरीतियों और कुप्रथाओं के जंजीरों में जकड़ कर छीन लिए थे मीना भाभी के सौन्दर्य प्रसाधन….!
फिर भी मीना भाभी अपने होठों पर मुस्कान बिखेरते हुए मुझे भी खींच ले गईं नाचने के लिए.. खूब नाची गाईं…
इधर कुछ रिश्तेदारी की औरतें आपस में खुसुर फुसुर कर रहीं थीं… मैं उनका आशय समझ गई थी…. शायद वे एक विधवा के चेहरे पर खुशी की एक झलक बर्दाश्त नहीं कर पा रही थीं…. या उनकी नजरों में विधवा का खुश रहना गुनाह था शायद….!
मीना भाभी इन सब बातों से बेखबर नाच गाने के बीच में उठ उठ कर अपना काम भी निपटा आती थी और फिर आकर ढोलकी के थाप के साथ वातावरण में अपना मधुर संगीत घोल रहीं थीं….!
दूसरे दिन हल्दी मटकोड़ का रस्म था मीना भाभी पूरी तैयारी कर रही थीं….. उसके बाद कोहबर लिखना था जिसमें दिवार पर दूल्हा दुल्हन का नाम लिखकर फूल पत्तियों आदि से चित्रांकन किया जाता है….जिसमें मीना भाभी पारंगत थीं………. सबका कोहबर वही लिखती थीं….. बेचारी सुबह से ही लिखने के लिए घोल तैयार कर रही थी….. मुझे कई तरह के डिजाइन दिखा रही थी……. पूछ रही थी कौन सा बढ़िया रहेगा……..!
जैसे ही भाभी कोहबर लिखने के लिए जाने लगीं तो चाची का आवाज आया… रुको……. तुम्हें यह नहीं पता कि हल्दी और कोहबर की रस्में सिर्फ सुहागिने ही करती हैं……..!
उसके बाद तो मीना भाभी के हांथों से हल्दी और रंगों के थाल छलक गए…… सारे रोके हुए अश्रु बांध तोड़ कर बहनों लगे…………..तमाशा न बन जाए इसलिए शायद वे अपने कमरे में चली गई….!
पर उनपर ध्यान कौन देता……. शुभ मुहूर्त निकल न जाए इसलिए सभी लोग हल्दी कोहबर आदि रस्मों में व्यस्त हो गए…!
पर मेरा मन उन रस्मों में नहीं लगा और मैं मीना भाभी के कक्ष में चली गई……… काफी मान मनुहार करने के बाद वे फफक फफक कर रोने लगी… कहने लगीं नाचने गाने में मेरा भी जी नहीं लग रहा था पर ननद की शादी की खुशी में मैं अपने गम को शामिल नहीं करना चाहती थी………… और फिर रो रोकर कहने लगीं कि आप ही बताइए कि मेरे पति तो बाद में थे पहले अम्मा जी के बेटे थे फिर उनके शरीर पर उनका भूत नहीं सवार हुआ और मुझपर उनका भूत सवार हो गया जो मैं शुभ कार्यों में शामिल नहीं हो सकती…….और मैं निरुत्तर……क्या उत्तर देती…….मेरा भी मन तो यही प्रश्न कर रहा था कि क्यों इन कुरीतियों के सर्प दंश को सिर्फ पत्नियों को ही झेलना पड़ता है….?
© किरण सिंह