ग़ज़ल
कुछ पा लेना, सब कुछ खोने से अच्छा है
छोटा घर भी, बेघर होने से अच्छा है
पर स्वतंत्र हों, पा लें चाहे रूखी रोटी
ज़र परोसते कैदी कोने से अच्छा है
नहीं ज़रूरी मिले सभी को पूरा सूरज
एक चक्षु भी, अँधा होने से अच्छा है
नवता के संग, परम्पराओं को भी पूजना
हर पल बोझिल जीवन ढोने से अच्छा है
जो हासिल है, साथ उसी के हँसकर जीना
पास नहीं, उसके हित रोने से अच्छा है
जल वो जीवन, जो कंठों की प्यास बुझाए
नदिया बनना, सागर होने से अच्छा है
सिर्फ ज़रूरत साथ रहे, यदि पार उतरना
बोझ बढ़ाकर नाव डुबोने से अच्छा है
खुले दृगों से सदा ‘कल्पना’ कदम बढ़ाना
ठोकर खा, दृग, नीर भिगोने से अच्छा है
— कल्पना रामानी