अहसासों का जंगल
अहसासों के सूने जंगल में
ढूंढ रहा वे अहसास
जो हो गये गुम जीवन में
जाने किस मोड़ पर.
हर क़दम पर चुभती हैं
किरचें टूटे अहसासों की,
सहेज कर जिनको उठा लेता
शायद कभी मिल जायें
सभी टूटे टुकड़े
और जुड़ जाये फिर से
टूटे अहसासों का आईना.
बेशक़ होंगे निशान
हरेक जोड़ पर
और न होगी वह गर्मी
उन अहसासों में,
लेकिन कुछ तो भरेगा शून्य
अंतस के सूनेपन का.
काश जान पाता दर्द
टूटे अहसासों का,
नहीं लगाता आँगन में
पौधे कोमल अहसासों के.
…कैलाश शर्मा