कवितापद्य साहित्य

अहसासों का जंगल

अहसासों के सूने जंगल में

ढूंढ रहा वे अहसास

जो हो गये गुम जीवन में

जाने किस मोड़ पर.

 

हर क़दम पर चुभती हैं

किरचें टूटे अहसासों की,

सहेज कर जिनको उठा लेता

शायद कभी मिल जायें

सभी टूटे टुकड़े

और जुड़ जाये फिर से

टूटे अहसासों का आईना.

 

बेशक़ होंगे निशान

हरेक जोड़ पर

और न होगी वह गर्मी

उन अहसासों में,

लेकिन कुछ तो भरेगा शून्य

अंतस के सूनेपन का.

 

काश जान पाता दर्द

टूटे अहसासों का,

नहीं लगाता आँगन में

पौधे कोमल अहसासों के.

…कैलाश शर्मा

कैलाश शर्मा

केंद्रीय सचिवालय सेवा एवं सार्वजनिक बैंक में विभिन्न प्रशासनिक पदों पर कार्य करने के पश्चात सम्प्रति सेवा निवृत. ‘श्रीमद्भगवद्गीता (भाव पद्यानुवाद)’ पुस्तक प्रकाशित. ब्लॉग लेखन के अतिरिक्त विभिन्न पत्र/ पत्रिकाओं, काव्य-संग्रहों में रचनाएँ प्रकाशित. वर्ष के श्रेष्ठ बाल कथा लेखन के लिए ‘तस्लीम परिकल्पना सम्मान – २०११’.