बीते पल भी वापिस लाना…..
है आसान बहुत मेरी, हर एक निशानी लौटाना।
गर मुमकिन हो तो मेरे, बीते पल भी वापिस लाना॥
माना लौटा दोगे मेरे खत, मेरी तस्वीरों को।
लौटा दोगे मेरे उपहारों की, सब शमसीरों को॥
नामुमकिन होगा लेकिन कुछ लम्हों का वापिस आना…
गर मुमकिन हो तो मेरे, बीते पल भी वापिस लाना……
नाम आपके जो कर दी थी, वो धडकन भी लौटा दो।
गर लौटाना मुमकिन हो तो, पावन तन भी लौटा दो॥
गर वापिस ला सकते हो तो, मेरे सपने भी लाना….
गर मुमकिन हो तो मेरे, बीते पल भी वापिस लाना……
वो मुस्काती सुबह, सिन्दूरी शाम क्या लौटा पाओगे।
जो कुछ तुमको किया समर्पण, वो भी क्या लौटाओगे॥
गर सम्भव हो सके तो मेरा, वो सम्मान भी लौटाना…
गर मुमकिन हो तो मेरे बीते पल भी वापिस लाना….
ज़ज़बातों से खेल तोडना, फितरत वही तुम्हारी है।
पर दिल जान वारती सब कुछ, नारी आज भी नारी है
विनती है बस इतनी खेल ना, ये नव प्रीत में दोहराना….
गर मुमकिन हो तो मेरे, बीते पल भी वापिस लाना…..
सतीश बंसल