ग़ज़ल
जो चाहा मुझको मिला नहीं,
मिला था जो वो रहा नहीं
क्या दुश्मनों से गिला करूँ,
जब दोस्तों में वफा नहीं
तेरे साथ गईं सब रौनकें,
अब जिंदगी में मज़ा नहीं
तेरी आरज़ू, तेरी जुस्तजू,
मेरी और कोई खता नहीं
मैं भी जीत लेता ये जहां,
मेरा साथ तूने दिया नहीं
सज़ा मिली मुझे उसकी क्यों,
जो जुर्म मैंने किया नहीं
तेरी खबर कैसे हो मुझे,
जब खुद का कोई पता नहीं
मेरा हाल तुमको है पता,
कोई राज़ तुमसे छुपा नहीं
मुझे हर जगह बस तू दिखे,
मैं कैसे कहूँ तू खुदा नहीं
वो है सबसे बेहतर गज़ल मेरी,
जिसे मैंने अबतक लिखा नहीं
— भरत मल्होत्रा
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल।