गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

 

ख्वाब कोई फिर हँसी दिल में सजा लूँ
सोचता है दिल उसे अपना बना लूँ

बीत जायेगी अमावस रात काली
नज़्म आ इक प्यार की भी गुनगुना लूँ

आ गया मौसम सुहाना ठण्ड का अब
लग न जाये ठण्ड सीने से लगा लूँ

छेड़ती है साँस मेरी रागिनी सुन
धड़कनें अब एक कर सरगम बना लूँ

बेखुदी हद से बड़ी है,हाँ सनम अब
रोकना मत आज सब दूरी मिटा लूँ

हुस्न का दरिया सनम हो मानता हूँ
इश्क के ठहरे समुन्दर में समां लूँ

दिल्लगी हद से अधिक बढ़ने लगी है
हो इजाजत प्यास दिल की अब मिटा लूँ

होश में आने न पाऊँ रात भर मैं
जाम होंठो के सनम, लब से लगा लूँ

भीग जाएँ आज तो जज्बात भी सब
फिर दहकती आँच से खुद को तपा लूँ

रहगुजर में मै बिछा दूँ चाँद तारे
अब कदम में आसमाँ तेरे झुका लूँ

है यही अरदास, रब से आज मेरी
सल्तनत दिल की तेरी,मै ही सँभालूँ

— राजेश श्रीवास्तव

 

राजेश श्रीवास्तव 'प्रखर'

राजेश श्रीवास्तव प्रखर कटनी (म.प्र.)