गीतिका/ग़ज़ल

“देवालयों की ओर बढ़ते कदमों में विश्वास होता है “,

देवालयों की ओर बढ़ते कदमों में विश्वास होता है ,
रूठी हुई जिन्दगी के संवरने का अहसास होता है||

चमक पत्थर की नश्वर देह को ही संवार सकती हैं
परमात्मा से मिलन ही आत्मा का श्रृंगार होता है ||

अंकों की बात न कर माना अंक विकराल होता है
शून्य और दशमलव का ….विशिष्ट स्थान होता है ||

सिद्धांतत: यही सच है …चंदा सूरज मिले ही नहीं
मगर चांदनी चंदा को सूरज का वरदान होता है ||

खौफ ए मौत नहीं है ,,इन्तजार बकाया बाकी है
फरिश्तों को भेज बुलवाना भी अहसान होता है ||

——— विजयलक्ष्मी

विजय लक्ष्मी

विजयलक्ष्मी , हरिद्वार से , माँ गंगा के पावन तट पर रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ हमे . कलम सबसे अच्छी दोस्त है , .