“देवालयों की ओर बढ़ते कदमों में विश्वास होता है “,
देवालयों की ओर बढ़ते कदमों में विश्वास होता है ,
रूठी हुई जिन्दगी के संवरने का अहसास होता है||
चमक पत्थर की नश्वर देह को ही संवार सकती हैं
परमात्मा से मिलन ही आत्मा का श्रृंगार होता है ||
अंकों की बात न कर माना अंक विकराल होता है
शून्य और दशमलव का ….विशिष्ट स्थान होता है ||
सिद्धांतत: यही सच है …चंदा सूरज मिले ही नहीं
मगर चांदनी चंदा को सूरज का वरदान होता है ||
खौफ ए मौत नहीं है ,,इन्तजार बकाया बाकी है
फरिश्तों को भेज बुलवाना भी अहसान होता है ||
——— विजयलक्ष्मी