कहानी

आस्तिक-नास्तिक

 हरबिलास और बहादुर की दोस्ती तो बचपन से ही गहरी थी लेकिन उनके विचारों में जमीन आसमान का अंतर था। हरबिलास बहुत धार्मिक विचारों से लबालब था तो दुसरी तरफ बहादुर तो नास्तिकता में इतना आगे निकल गया था कि वोह तो भगवान् को भी नहीं मानता था। हरबिलास मंदिर गुरदुआरे जाता, पाठ पूजा करता और धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करता। बहादुर एक तर्कशील सोसाएटी का सदस्य था और लोगों को वहमो भरमों व् अंधविश्वासों से निकालने के यतन में लगा रहता। साधू संतों के धर्म आस्थानों में जा कर उन से बहस करता लेकिन सभी भगत लोग उन पर हँसते और उस को पागल सरफिरा कहते। कई जगह भगतों ने उस को पीटा भी लेकिन पता नहीं वोह किस मट्टी का बना हुआ था कि बार बार लोगों को लैक्चर देता, उन को बताता कि बाबे, साधू संत, ज्योतिषी और जादूगर कैसे लोगों को बेवकूफ बनाते हैं। इतने बड़े बड़े आश्रम बना कर लोगों की लहू पसीने की कमाई पर ऐश करते हैं।  कभी तर्कशील सोसाएटी वाले मेले में जाते और बहादुर  लोगों को जादू के ट्रिक दिखा कर बताता  कि यह लोग कैसे भोले भाले लोगों का आर्थिक शोषण करते हैं और इस  सब के आगे बहादुर ही होता था । यहाँ  बहादुर नास्तिक विचारों का था तो दुसरी ओर उस की पत्नी धार्मिक विचारों की थी और वोह हमेशा बहादुर के साथ झगडा करती कि वोह गलत था और गुमराह हो गया था. उन दोनों के विचार मैगनेट के नौर्थ पोल और साऊथ पोल जैसे थे, एक पोल नास्तिकता की ओर खिंचा चला जा रहा था तो दूसरा आस्तिकता की ओर. हरबिलास कभी कभी उनके घर आ कर दोनों को समझाता, ख़ास कर बहादुर को कि वोह बहुत गलत था, लेकिन बहादुर गुस्से में कहता कि वोह सब गलत हैं।
कई सालों से निकलता धुआं एक दिन जवाला मुखी बन कर फट गया। एक दिन बहादुर की पत्नी ने एक महात्मा को घर के कुछ गहने इस लिए दे दिए कि वोह उन के पति को सीधे रास्ते पर ले आयें। इस का पता बहादुर को चल गया और उस ने अपनी पत्नी को बहुत पीटा। पत्नी गुस्से में भीतर से मट्टी के तेल की पीपी ले आई और अपने ऊपर छिडकने लगी और आतम हत्या करने की धमकी दे दी। बहादुर ने उस से पीपी छीन ली और पत्नी को शांत करने की कोशिश करने लगा। उस रात किसी ने खाना नहीं खाया। सुबह तीन चार वजे बहादुर अपनी चारपाई से उठा और एक पेपर पर “मुझे ढूँढने की कोशिश ना करना, इस घर से हमेशा के लिए मैं जा रहा हूँ ” लिखकर तकिये के नीचे रख दिया और घर से बाहर चला गया .पत्नी सुबह उठी तो पति को ना पा कर हैरान हुई इधर उधर देखने लगी .बिस्तरे को इकठा करने की गरज से जब उस ने तकिया उठाया तो नीचे एक पेपर देख कर उस को पड़ने लगी .यों ही पेपर पड़ा तो उस के नीचे से ज़मीन खिसक गई और उस का दिमाग फटने को हो गया कि यह सब किया हो गया था . वोह हरबिलास के घर गई और उसे सब कुछ बताया . यहाँ यहाँ बहादुर जाता था, वहां वहां वोह गया लेकिन कुछ पता ना चला . पेपर में भी दिया गया लेकिन कुछ पता ना चला .छोटे छोटे बच्चों की  वोह अकेली कैसे परवरिश कर पाएगी, यह अहसास उस को कोसने लगा कि उस ने पति को दुःख दिया था, तभी तो वोह घर छोड़ कर चले गया था .
इस बात को वर्षों बीत गए . हरबिलास अक्सर धर्म आस्थानों की यात्रा करने के लिए दूर दूर जाता ही रहता था . एक दफा वोह बहुत दूर एक इतिहासक धर्म अस्थान के दर्शन करने चल पड़ा .जब वोह वहां पुहंचा तो जा कर मन पर्सन हो गया . नज़दीक और भी धर्म अस्थान होंगे, यह जान्ने के लिए उस ने लोगों से पुछा तो किसी ने बताया कि एक पहाडी पर साईं कांशी राम जोज़फ़ आत्मा सिंह का आश्रम है जिन के दर्शनों को सभी धर्मों के लोग जाते हैं। यह कैसा नाम है, हरबिलास सोचने लगा। इस नाम में तो सभी धर्म शामल हैं। कुछ देर बाद वोह पहाड़ी पर बने आश्रम के नज़दीक पहुँच गया। आश्रम देख कर ही मन पर्सन हो गया। चारों तरफ बृक्ष ही बृक्ष थे और यह आश्रम जंगल में मंगल लग रहा था। हज़ारों की संख्या में शर्धालू गाते हुए आगे बड़ रहे थे। जब हर्बलास वहां पहुँचा  तो देखा महाराज एक ऊंचे सिंघासन पर बैठे थे। हर्बलास ने आगे बढ़ कर महाराज जी के चरण स्पर्श किये और उठ कर हाथ जोड़ दिए। महाराज जी का तेज देख कर मन खुश हो गया लेकिन उन का चेहरा कुछ कुछ उस के दोस्त बहादुर से मिलता था। भगतों की भीड़ के कारण वोह एक तरफ चल दिया और दूर जा कर बैठ गया। शाम हो गई थी, वोह उठने लगा तो एक साध्वी उस के पास आई और बताया कि महाराज जी ने उस को बुलाया है। हर्बलास पर्सन हो कर साध्वी के पीछे पीछे चलने लगा। कुछ ही मिनटों में वोह एक महल नुमा आश्रम में दाखल हुए। इशारा पाते ही साध्वी वहां से चली गई। हर्बलास हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया। महाराज हंस पड़े और बोले, ” मुझे मालूम है तुम मुझे पहचान गए थे और तुम सही थे, मैं बहादुर ही हूँ “.
“यहां कैसे ?” हरबिलास बोला।
“ज़्यादा बातें मैं नहीं करूँगा”, बहादुर बोला। “जब मैंने घर छोड़ा  था तो मैंने दुखी हो कर छोड़ा था, कितने वर्ष मैंने लोगों को अंधविश्वास से निकालने के लिए बिता दिए लेकिन मुझे लोगों की गालिआं ही मिली, जब मेरी पत्नी ने भी मेरा साथ नहीं दिया और दुःख ही दिया तो मेरा चैन खो गया, मैंने सोचा जब बड़े बड़े गुरु महात्मा इन लोगों को समझा नहीं सके तो मैं क्या कर लूंगा, क्रोध और दुःख से मैं अपने आप को जला रहा था, सोचा भारती लोगों के खून में ही अंधविश्वास भरा हुआ है  और इन का ब्लड् ट्रांस्फ्यूयन नहीं हो सकता, यह हैं ही इसी काबल  ,इनको खूब लूटना चाहिए, जो धर्म गुरु इन को लूट रहे हैं वोह सही कर रहे हैं, इसी लिए मैंने भी यही किया, लोगों को लूट रहा हूँ, लोग पैसे सोने चांदी के ढेर यहां ढेरी कर रहे हैं, मेरे भगत सारा दिन पैसे गिण गिण कर थक जाते हैं लेकिन पैसे आने खत्म नहीं होते ” बहादुर बोले जा रहा  था।
“तेरे मन को शान्ति मिल गई ?” हर्बलास बोला।
“मुझे नहीं पता, शायद मैं शांत होना भी नहीं चाहता ” बहादुर बोला।
“पत्नी और बच्चे याद आते हैं ?”हर्बलास ने पुछा।
” नहीं ” बहादुर बोला।
“झूठ बोलता है तू, मालूम है तेरे बच्चे किस तरह गरीबी से लड़ रहे हैं और यह भी बता दूँ तेरी पत्नी अब बहुत बदल गई है, तेरे रास्ते की उस को समझ आ गई है लेकिन तेरी तरह उसने हार नहीं मानी, वोह लोगों के घरों में काम करके बच्चों को पड़ा रही है और तू यहां अप्सरों के साथ रास लीला रचा रहा है, महलों में रहता है, तेरे इन महलों से ज़्यादा पवित्तर मैं भाबी जी का घर मानता हूँ ” हर्बलास उठ कर जाने के लिए तैयार हो गया।
” हरबिलास ! प्लीज़ मुझे बता दे, मैं क्या करूँ ” बहादुर घबराया सा बोला।
जाते जाते हर्बलास बोला, “अगर तेरी आत्मा तुझे इजाजत देती है तो एक किताब लिख, जिसमें तेरी सच्ची कहानी लिखी हो, ताकि लोगों को समझ आ जाए कि यह डेरे आश्रम कैसे बनते हैं और यह भी लिख कि धर्म असल में  है क्या। यह जो कारूं का खज़ाना तुम ने जमा किया है, यह तेरा नहीं है, यह जनता का है और इस का क्या करना है इसका हल भी सोच, यह भी कहता चलूँ यह ज़िंदगी बहुत छोटी है, यह धन तू अपने साथ नहीं ले जाएगा, इस को भी धियान से सोच “
हरबिलास किस वक्त रुखसत हो गया बहादुर को पता ही नहीं चला क्योंकि उस के दिमाग में कितने ज्वालामुखी फट रहे थे, उस को कोई मालूम नहीं था।
इस बात को एक साल हो गया था। एक दिन गली मोहल्ले में शोर मच गया, ” बहादुर आ गया, बहादुर आ गया “. बहादुर की पत्नी ख़ुशी से झूम उठी थी और बच्चे बहादुर के साथ लिपटे हुए थे।

2 thoughts on “आस्तिक-नास्तिक

  • Man Mohan Kumar Arya

    शिक्षाप्रद प्रेरणादायक कहानी। बधाई एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी।

    • धन्यवाद मनमोहन जी .

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