चौपाई-दोहा : कलियुग महिमा
चौपाई
कलियुग महिमा बरनि न जाई, ट्वीटर फेसबुक की प्रभुताई
सुबह शाम जप एकहि नामा, तन मन नेक समाहित कामा
भाव-विभाव बिलोकि भवानी, रजनी दिवा बरसते पानी
काम कंठ कोकिल सुरधामा, काग भूलि जस आपन नामा
मन मयूर कोकिल जस गंगा , कल-कल बहती गंग तरंगा
दोहा
नैना से आँसू बहा, बनी नदी की धार
कन्त विरह सजनी मरी, बिना भानु भिनसार
सावन से भादों कहा, अब ना बरसो यार
धरती मन चंदा बसे , राहु केतु का प्यार
बिना श्याम राधा कहाँ, राधा मय संसार
चंदन तन शीतल करे ,माया मन व्यापार
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’