बदले का हस्ताक्षर
पिताजी के हृदयाघात से निधन होने से पूर्व उनके कहे हुए ये शब्द आज उसके जेहन में जैसे हथौड़े मार रहे थे, “अकाउंट्स के बाबू ने मेरे जमा कराये हुए रुपयों की बिना हस्ताक्षर की जाली रसीद दे दी और झूठ बोल दिया कि रूपये जमा नहीं कराये| मेरी जगह तुझे नौकरी मिलेगी, उसे जवाब ज़रूर देना…”
अपने पिताजी को तो उसने पहले ही सच्चा साबित कर दिया था और आज जवाब देने का समय आ गया था, वही बाबू उसके सामने हाथ जोड़े अपनी पेंशन और ग्रेच्युटी के अंजाम को सोच डरा हुआ खड़ा था|
उसने दराज से फाइल निकाली और एक चेक पर हस्ताक्षर कर उसे दे दिया| चेक को देख उस बाबू की आँखें आश्चर्य से फ़ैल गयीं, वो पूरी राशि का था|
बाबू ने उसके पैर छू लिये और कहा, “सर, आपने मुझे माफ़ कर दिया… आप हस्ताक्षर न करते तो मैं और मेरा परिवार भूखा मर जाता|”
“मेरे पिताजी ने मुझे किसी को गलत तरीके से मारने के संस्कार नहीं दिए, मेरा यह हस्ताक्षर ही उनका प्रत्युत्तर है|” यह कह कर वो चला गया|
और बाबू वहीँ खड़ा बदला लेने का अर्थ समझने की कोशिश करने लगा|
— चंद्रेश कुमार छतलानी
लघु कथा अच्छी लगी .