छुआछूत का नया रूप
‘अ’ पहली बार अपने दोस्त ‘ब’ के घर गया, वहां देखकर उसने कहा, “तुम्हारा घर कितना शानदार है – साफ और चमकदार”
“सरकार ने दिया है, पुरखों ने जितना अस्पृश्यता को सहा है, उसके मुकाबले में आरक्षण से मिली नौकरी कुछ भी नहीं है, आओ चाय पीते हैं”
चाय आयी, लेकिन लाने वाले को देखते ही ‘ब’ खड़ा हो गया, और दूर से चिल्लाया, “चाय वहीँ रखो…और चले जाओ….”
‘अ’ ने पूछा, “क्या हो गया?”
“अरे! यही घर का टॉयलेट साफ़ करता है और यही चाय ला रहा था!”
— चंद्रेश कुमार छतलानी
किसी के बारे में तो कुछ नहीं कह सकता लेकिन मुझे आप की लघु कथा बहुत अच्छी लगी . आज तक जो हिन्दू धर्म का नुक्सान हुआ है ,इस छूया छात की वजह से ही हुआ है . कितने दलित लोग इसाई बने कितने मुसलमान बने ,किसी को जान्ने की फुर्सत नहीं है ,हाँ घर वापसी की दुहाई बहुत देते हैं या लव जिहाद की . यहाँ मैं रहता हूँ ,चर्मकारों के बच्चे ऊंची जात के बच्चों से शादीआं करवा रहे हैं ,लोग एक दुसरे की शादिओं में जाते हैं और आपस में मिल बैठ कर खाते पीते हैं .कैसी उन्ती है भारत की जो हर चैनल पे नफरत की बातें ही देखने को मिलती हैं .ऐसी लघु कथाएँ और लोगों को भी लिखने चाहिए ताकि जागरूपता बड सके .