प्रकृति की छटा निराली
आज प्रकृति की छटा निराली है , हरे – भरे वृक्षों से डालिया सजी है । कोयल की कुहू से – भौरो की गुन्जन से, वर्षा की बूँदो से कलिया खिली है। मेघ के गर्जन से- मोर के छम-छम से, हरे – भरे खेतो मे क्यारिया बनी है। चिङियो के चहकन से -फुलो के महकन से, हरे -भरे बागो मे उपवन खिले है
आज प्रकृति की छटा निराली है।
कविता अच्छी लगी लेकिन आज तो सर्दी में सब कुछ जम रहा है .