कविता

चालीस पार की औरतें

चालीस पार की औरतें

जैसे हो

दीमक लगी दीवारें !

चमकदार सा

बाहरी आवरण,

खोखली होती

भीतर से

परत -दर -परत।

जैसे हो

कोई विशाल वृक्ष,

नीड़ बनाते हैं पंछी जिस पर

बनती है

आसरा और सहारा

असंख्य लताओं का

लेकिन

गिर जाये कब चरमरा कर

लगा हो  घुन  जड़ों में।

जीवन में

क्या पाया

या

खोया अधिक !

सोचती,

विश्लेषण करती।

बाबुल के घर से

अधिक हो गई

पिया के घर की,

तलाशती है जड़ें

फिर भी,

चालीस पार की औरतें !

*उपासना सियाग

नाम -- उपासना सियाग पति का नाम -- श्री संजय सियाग जन्म -- 26 सितम्बर शिक्षा -- बी एस सी ( गृह विज्ञान ), महारानी कॉलेज , जयपुर ज्योतिष रत्न , आई ऍफ़ ए एस दिल्ली प्रकाशित रचनाएं --- 6 साँझा काव्य संग्रह, ज्योतिष पर लेख , कहानी और कवितायेँ विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहती है।

2 thoughts on “चालीस पार की औरतें

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    गहरी अभिव्यक्ति

  • कविता की गहराई समझ आई .

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