ग़ज़ल : दर्द से मेरे रिश्ते पुराने लगते हैं
वह हर बात को मेरी क्यों दबाने लगते हैं
जब हकीकत हम उनको समझाने लगते हैं
जिस गलती पर हमको वह समझाने लगते हैं
वही गलती को फिर वह दोहराने लगते हैं
आज दर्द खिंच कर मेरे पास आने लगते हैं
शायद दर्द से मेरे रिश्ते पुराने लगते हैं
दोस्त अपने आज सब क्यों बेगाने लगते हैं
‘मदन’ दुश्मन आज सारे जाने पहचाने लगते हैं
उनकी मुहब्ब्बत का असर कुछ ऐसा हुआ है
ख्याल आने पे बिन वजह हम मुस्काने लगते हैं
— मदन मोहन सक्सेना