समर्थ ही श्रेष्ठ
“वो तीन बच्चे देख रहे हो…”
“हाँ…”
“इनमें से एक बच्चा शायद अधिक सक्षम है, वो कागज़ लेकर आया था, बाकी दो बच्चों ने तीन नावें बनाकर एक नाव उसे दे दी, जिसे उसने सबसे आगे रखा और बाकी दोनों की पीछे|”
“बच्चों का खेल है….”
“हाँ! लेकिन सिर्फ बच्चों का ही नहीं…”
उसके जेहन में देश के कई प्रबुद्ध लोगों के चेहरे आ गये जो सबसे आगे रहते थे|
— चंद्रेश कुमार छतलानी
गेहराई और भाव्पूरत .