करणी का फल
आज सासु माँ की बहुत याद आ रही है , कड़ाके की ठंड में रात को दस बजे तक भी जब मैं अपनी व्यस्तता का बहाना बनाकर खाना नही बनाती थी,तो भी कभी कोई शिकायत नही करती मुझसे।
रमा के आज एक-एक कर वो सब बाते फ़िल्म की तरह दिमाग में चल रही है। रात को ही क्या दिन में भी यही हाल था। कई बार तो सासु माँ को इस अवस्था में खुद भी बनाकर खाना पड़ जाता था।
“अरे! आप बैठी -बैठी क्या सोच रही है मुझे महिला एवं बाल कल्याण दफ्तर में मीटिंग के लिए जाना है, जल्दी से किचन में आईये और काम में हाथ बटाईए.”, बहू की रौबदार आवाज से रमा की तन्द्रा भंग हुई।
— शान्ति पुरोहित
लघुकथा अच्छी है। पर रमा और नैना देवी में क्या रिश्ता है यह स्पष्ट नहीं हुआ। क्या दोनों एक ही हैं?
आभार भाई साहब गलती की और ध्यान दिलाया ..रमा और नैना देवी एक ही है एडीट कर दिया है