कविता

बोध…..


               मैं,
    विचलित था,बरसों से,
            ये सोच कर
     तुम छोड़ गये,मुझे अकेला,
      इस भीड़ भरे संसार में
       ‘मैं’ भी कैसा अबोध
      बहाता रहा नदियां
           आँखों से,
      और ढूँढ़ता रहा तुम्हें,
  उन स्मृतियों में/उन स्थानों पर
          जहाँ तुम्हें ,
       मैंने खोया था…
      पर, आज जब तुम्हें पाता हूँ,
              मुझमें
     तो सोचता हूँ,तुम गये नहीं,
           ये ‘मैं ‘ नहीं,
          तुम ही तो हो 
      फर्क कहाँ होता है
     अंश और अंशी में…
         **********
— विश्वम्भर पाण्डेय ‘व्यग्र’

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी,स.मा. (राज.)322201

2 thoughts on “बोध…..

  • विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'

    धन्यवाद जी !

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया

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