आंखों में उसकी शिकायत भर नही है..
आंखों में उसकी शिकायत भर नही है।
पल रही कोई बग़ावत देखता हूं॥
जानें किस माहौल का है असर लेकिन।
पल रही कोई अदावत देखता हूं॥
हो रहे उदघोष और जयघोष जो भी।
उनमें कुछ अनहोनी आहट देखता हूं॥
शहर में उठते हुऐ कम से धुएं में।
छुपती चिंगारी भयानक देखता हूं॥
सूनी गलियों के डराते मोड पर भी।
कुछ अजब सी सुगबुगाहट देखता हूं॥
लग रहा है डर मुझे खामोशियों से।
ज़लज़ले की सरसराहट देखता हूं॥
कुछ वज़हा तो है की बदली हैं फिज़ाएं।
दूर तक कुछ सनसनाहट देखता हूं॥
क्यूं घुटन लगने लगी अपने ही घर में।
कुछ अजब सी छटपटाहट देखता हूं॥
होता हूं हैरान जब इक हम वतन को।
करते भारत की ख़िलाफ़त देखता हूं॥
आपको दिखती नही है जानें क्यूं ये।
मैं होती रिश्तों की शहादत देखता हूं॥
मेरी आदत है दिलों में झांकने की।
जिसके दिल की है जो हालत देखता हूं॥
सतीश बंसल