कविता

कौन किसी की पीर सुने..

कौन किसी की पीर सुने, सब पत्थर के इंसान यहां।
रिश्ते नातें दौलत इनकी, दौलत ही भगवान यहां॥

भाव भावना कौन पूछता, भोग विलास का अपार हुआ।
जिसने रखे उसूल सलामत, वो जग में लाचार हुआ॥
अब केवल दौलत की यारी दौलत का सम्मान यहां…..
रिश्ते नातें दौलत इनकी, दौलत ही भगवान यहां……

प्रेम प्रीत सब हुआ छलावा, रिश्तों की मर्यादा टूटी।
संस्कार और सत्कर्मों की, किस्मत सबसे ज्यादा फूटी॥
खेल हुआ है सब दौलत का, अब नातों का मही मान यहां….
रिश्ते नातें दौलत इनकी, दौलत ही भगवान यहां……

अब सूरत भारी सीरत पर, ढोंग धर्म पर भारी है
मानव मूल्य पतित है फिर भी, जीने की लाचारी है॥
क्षण भंगुर जीवन को समझ लिया, अमरत्व निधान यहां…
रिश्ते नातें दौलत इनकी, दौलत ही भगवान यहां…..

कौन सदा रह पाया जग में, सबको जाना होगा एक दिन।
कर्म और दुष्कर्म यही बस, हाथ ख़जाना होगा एक दिन॥
कर्म के मोती ही जायेगें, दौलत का नही मान वहां….
रिश्ते नातें दौलत इनकी, दौलत ही भगवान यहां….

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.