कौन किसी की पीर सुने..
कौन किसी की पीर सुने, सब पत्थर के इंसान यहां।
रिश्ते नातें दौलत इनकी, दौलत ही भगवान यहां॥
भाव भावना कौन पूछता, भोग विलास का अपार हुआ।
जिसने रखे उसूल सलामत, वो जग में लाचार हुआ॥
अब केवल दौलत की यारी दौलत का सम्मान यहां…..
रिश्ते नातें दौलत इनकी, दौलत ही भगवान यहां……
प्रेम प्रीत सब हुआ छलावा, रिश्तों की मर्यादा टूटी।
संस्कार और सत्कर्मों की, किस्मत सबसे ज्यादा फूटी॥
खेल हुआ है सब दौलत का, अब नातों का मही मान यहां….
रिश्ते नातें दौलत इनकी, दौलत ही भगवान यहां……
अब सूरत भारी सीरत पर, ढोंग धर्म पर भारी है
मानव मूल्य पतित है फिर भी, जीने की लाचारी है॥
क्षण भंगुर जीवन को समझ लिया, अमरत्व निधान यहां…
रिश्ते नातें दौलत इनकी, दौलत ही भगवान यहां…..
कौन सदा रह पाया जग में, सबको जाना होगा एक दिन।
कर्म और दुष्कर्म यही बस, हाथ ख़जाना होगा एक दिन॥
कर्म के मोती ही जायेगें, दौलत का नही मान वहां….
रिश्ते नातें दौलत इनकी, दौलत ही भगवान यहां….
सतीश बंसल