एक और पग मजबूती के साथ
कहाँ पता था
चलते हुए यूँ अकेले
पैरों में छाले पड़ जायेंगे
कई उँगलियाँ उठेगी
कई भौवें भी तनेगी
हर एक कदम पर
उठेंगे सवाल
कईयों के अहम् पर चोट पड़ेगी
और मैं
हर संघर्ष के बाद
और भी बन जाउंगी दुघर्ष
कहाँ पता था
क्योंकि छाले अब तकलीफ नहीं देते हैं
हर दर्द के साथ
मेरे होठों पर दे जाते हैं मुस्कान
जेठ अब जलाती नहीं
पसीने की हर बूंद चेहरे की चमक बढ़ा देते हैं
और मैं चल पडती हूँ
एक और पग मजबूती के साथ !
— महिमा श्री
बहुत खूब ! बढिया .