गीतिका/ग़ज़ल

अच्छा लगता है/गज़ल/

नित्य नवेली भोर, टहलना अच्छा लगता है
चिड़ियों सँग, चहुं ओर, चहकना अच्छा लगता है

जब बहार हो, रस फुहार हो, वन-बागों के बीच
मुस्काती कलियों से मिलना, अच्छा लगता है

गोद प्रकृति की, हरी वादियाँ, जहाँ दिखाई दें
बैठ पुरानी यादें बुनना, अच्छा लगता है

झील किनारे, बरखा-बूँदों में सखियों के साथ
इसकी उसकी, चुगली करना, अच्छा लगता है

सूर्योदय, सूर्यास्त काल में, सागर सीने पर
आवारा नौका सम बहना, अच्छा लगता है

चाह , भरी महफिल में कोई मुझको भी गाए
गीत-गज़ल का हिस्सा बनना, अच्छा लगता है

दिया ‘कल्पना’ तूने जो भी, हर ऋतु में उपहार
कुदरत तेरा वो हर गहना, अच्छा लगता है।

कल्पना रामानी

*कल्पना रामानी

परिचय- नाम-कल्पना रामानी जन्म तिथि-६ जून १९५१ जन्म-स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवास-नवी मुंबई शिक्षा-हाई स्कूल आत्म कथ्य- औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेरे साहित्य प्रेम ने निरंतर पढ़ते रहने के अभ्यास में रखा। परिवार की देखभाल के व्यस्त समय से मुक्ति पाकर मेरा साहित्य प्रेम लेखन की ओर मुड़ा और कंप्यूटर से जुड़ने के बाद मेरी काव्य कला को देश विदेश में पहचान और सराहना मिली । मेरी गीत, गजल, दोहे कुण्डलिया आदि छंद-रचनाओं में विशेष रुचि है और रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में वेब की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ की उप संपादक। प्रकाशित कृतियाँ- नवगीत संग्रह “हौसलों के पंख”।(पूर्णिमा जी द्वारा नवांकुर पुरस्कार व सम्मान प्राप्त) एक गज़ल तथा गीत-नवगीत संग्रह प्रकाशनाधीन। ईमेल- [email protected]