अच्छा लगता है/गज़ल/
नित्य नवेली भोर, टहलना अच्छा लगता है
चिड़ियों सँग, चहुं ओर, चहकना अच्छा लगता है
जब बहार हो, रस फुहार हो, वन-बागों के बीच
मुस्काती कलियों से मिलना, अच्छा लगता है
गोद प्रकृति की, हरी वादियाँ, जहाँ दिखाई दें
बैठ पुरानी यादें बुनना, अच्छा लगता है
झील किनारे, बरखा-बूँदों में सखियों के साथ
इसकी उसकी, चुगली करना, अच्छा लगता है
सूर्योदय, सूर्यास्त काल में, सागर सीने पर
आवारा नौका सम बहना, अच्छा लगता है
चाह , भरी महफिल में कोई मुझको भी गाए
गीत-गज़ल का हिस्सा बनना, अच्छा लगता है
दिया ‘कल्पना’ तूने जो भी, हर ऋतु में उपहार
कुदरत तेरा वो हर गहना, अच्छा लगता है।
— कल्पना रामानी