पीली चूडियाँ
मेरे हाथ की ये पीली चूड़ियाँ
नींद में भी मुझे जगाती हैं
कभी खट्टी, कभी मिट्ठी नींद सुलाती हैं
मेरे हाथ की ये पीली चूड़ियाँ
कभी मेरी कलाई के सहारे
खनक-खनक कर पुकारे
कभी ठहर कुछ देर
मेरी कलाई पर ही आराम करती हैं
कभी खूब शोर मचाती हुई
इन साँसों में उत्तेजना भरती हैं।
मेरे प्रीतम की भी हैं प्रिया
मेरे हाथ की ये पीली चूड़ियाँ
नींद में भी मुझे जगाती हैं
कभी खट्टी, कभी मिट्ठी नींद सुलाती हैं
मेरे हाथ की ये पीली चूड़ियाँ
जहाँ जाती, वहाँ आती चूड़ियाँ
मैं दूल्हा, तो मेरी बाराती चूड़ियाँ
कभी तो ये चूड़ियाँ, आपस में ही
मिलकर कानाफूसी करती हैं
कभी पड़ोसन के हाथों में सजी
गुलाबी चूड़ियों से जलती हैं
सखी हैं लाल-पीली-नीली चूड़ियाँ
नींद में भी मुझे जगाती हैं
कभी खट्टी, कभी मिट्ठी नींद सुलाती हैं
मेरे हाथ की ये पीली चूड़ियाँ
कभी हाथापाई भी करती हैं
सहमी तो खनकने से भी डरती हैं
गुस्से से हाथ कभी पटक दूँ
तो दु:ख से टूट बिखर जाती हैं
कभी तो पूरी बाँह पर
खुशी से नाचती नज़र आती हैं
सु:ख-दु:ख के आँसुओं से गीली चूड़ियाँ
मेरे हाथ की ये पीली चूडियाँ
नींद में भी मुझे जगाती हैं
कभी खट्टी कभी मिट्ठी नींद सुलाती हैं
मेरे हाथ की ये पीली चूड़ियाँ
नई चूड़ियों को देखकर
खुद ही हाथ से जाती उतर
मेरी ये पीली चूडियाँ
चुपचाप श्रृंगारदान में चली जाएं
“काँच की मैं और माटी की तू”
अंत में बस इतना ही बतलाएं।
क्यों मुझसे ये मिली चूड़ियाँ
मेरे हाथ की ये पीली चूड़ियाँ ?
— नीतू सिंह
बहुत अच्छी कविता !
शुक्रिया