कविता

कविता

बड़ी मासूमियत से,
एक दिन उसने मुझे पूछा,
मुहब्बत नाम है किसका,
मुहब्बत कैसी होती है,
कहा मैंने सुनो जानां,
मुहब्बत के बहुत रंग हैं,
इबादत की तरह इसके,
ना जाने कितने ही ढंग हैं,
कभी चैन-ओ-सुकूं है ये,
कभी बेचैन करती है,
कहीं मर के भी जिंदा है,
कहीं हर रोज़ मरती है,
कभी चंचल, कभी गुमसुम,
कभी शोला कभी शबनम,
कभी सूरज कभी बादल,
थोड़ी सी लगे पागल,
चुरा कर नींद आँखों से,
ये रातों को जगाती है,
ना हो पाएं कभी पूरे,
ऐसे सपने दिखाती है,
कभी मिलने का वादा है,
कभी ये इंतज़ारी है,
जो चढ़ के फिर नहीं उतरे,
अजब इसकी खुमारी है,
ना लफ्ज़ों में कहा जाए,
ना कागज़ पर लिखा जाए,
मुहब्बत जिंदगी है खुद,
इसे तो बस जिया जाए,
मगर तुमने जो पूछा है,
मुहब्बत कैसी होती है,
तो मैं इतना कहूँगा बस,
ये तेरे जैसी होती है,
ये तेरे जैसी होती है,

— भरत मल्होत्रा

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]