गीत
खुशियों के पल सबको बांटे
पर अपने हिस्से सन्नाटे
और दर्द की शाम।
कहने को हम मुस्काते हैं
नमी आँख में भर लाते हैं,
नैन कटोरे भरे अश्रु से और ह्रदय प्रिय नाम।
मनवा जग की रीत यही है,
हमने कितनी पीर सही है
साँसें रूकती लगती जैसे दिल को मिले आराम।
हमने सबको फूल ही बांटे
अपने हिस्से चुन लिए कांटे
भाव की बोली लगे यहां पर मिलता यही इनाम
घूंट घूंट विष सदा पिया है
जीवन मीरा सदृश जिया है
वन वन भटकूँ ले एक तारा जीवन श्याम के नाम।
— शुभदा बाजपेई