कविता

राजभाषा अधिकारी

अपनी राजभाषा की सेवा में लगी हूँ।
कार्यरत हूँ और प्रहरी सी जगी हूँ।

सीमाओं की जंजीर सी बाधाऐं हैं खड़ी
द्वेष मिश्रित कितनी भावनाऐं हैं अड़ी
काम यह लेकिन नहीं बल शौर्य का
प्रेम और सदभाव से ही आगे बढ़ी हूँ।
मैं अपनी राजभाषा की सेवा में लगी हूँ।

आंकडों और नंबरों के जाल हैं भयंकर
ताकती हूँ चकित दृगों से नैन भर-भर
छोड़ इस जंजाल को क़ाग़ज़ों के ढेर में
इसकी प्रगति के सोपान पर निरंतर चढ़ी हूँ।
मैं अपनी राजभाषा की सेवा में लगी हूँ।

आज भी दिल-दहलता है यह देखकर
क्या हश्र है, क्या दुर्गति 14 सितंबर
दूरियां अभी तय करनी हैं बहुत
मैं परंतु देख दूरियां कब विचलित हुई हूँ।
मैं अपनी राजभाषा की सेवा में लगी हूँ।
कार्यरत हूँ और प्रहरी सी जगी हूँ।

– नीतू सिंह 

*नीतू सिंह

नाम नीतू सिंह ‘रेणुका’ जन्मतिथि 30 जून 1984 साहित्यिक उपलब्धि विश्व हिन्दी सचिवालय, मारिशस द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिन्दी कविता प्रतियोगिता 2011 में प्रथम पुरस्कार। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानी, कविता इत्यादि का प्रकाशन। प्रकाशित रचनाएं ‘मेरा गगन’ नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2013) ‘समुद्र की रेत’ नामक कहानी संग्रह(प्रकाशन वर्ष - 2016), 'मन का मनका फेर' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2017) तथा 'क्योंकि मैं औरत हूँ?' नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) तथा 'सात दिन की माँ तथा अन्य कहानियाँ' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) प्रकाशित। रूचि लिखना और पढ़ना ई-मेल [email protected]

4 thoughts on “राजभाषा अधिकारी

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

    • नीतू सिंह

      शुक्रिया

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत सुन्दर रचना .

    • नीतू सिंह

      शुक्रिया

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