कुण्डली/छंद

रोला छंद

उम्र के टूटें पात, करम कुछ कर लो भाई।
मिले न मिट्टी गात, समझ लो पीर पराई।
आया खाली हाथ, रेत सा फिसले जीवन।
बने जो धुँआ राख, न ठहरे यूँ अंतरमन।।
कभी न पकड़ो राह, कदम को जो बहकाती।
सुन के निंदा चाह, अकेला मन कर जाती।।
गठरी दुख की देख, कलेजा भर-भर आता।
सुख की महत्ता भाव, तभी दुख समझा जाता।।
तन की नैया प्राण, श्वास पतवार पुरानी।
सपन रहें हैं छीज,मनुज तू है नूरानी।।

गुंजन अग्रवाल

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*

3 thoughts on “रोला छंद

  • नीतू सिंह

    अति सुंदर

  • गुंजन अग्रवाल

    आभार भैया

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता !

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