हंसकर तमाम ज़िन्दगी के दर्द सह गये..
हंसकर तमाम ज़िन्दगी के दर्द सह गये।
दिल के सभी अरमां दबे दिल में ही रह गये॥
हमने कभी आंखों से निकलने नही दिये।
आंसू हमारे पलकों में पलकर ही रह गये॥
जिनकी चाह में गुजार दी उम्र तमाम।
हम उनके लिये अजनबी बन कर ही रह गये॥
वो जिन्दगी की दौड में आगे निकल गये।
जो आज में बदला नही हम कल ही रह गये॥
तेरा भी कुछ कसूर नही है ऐ जि़न्दगी।
कठपुतली हम नसीब की बन कर ही रह गये॥
किस से करें शिकायतें इल्ज़ाम किसको दें।
अपनों में भी हम अजनबी बन कर ही रह गये॥
सच ये है कि जीने का सलीका नही आया।
बिन रोशनी के दीप सा जलकर ही रह गये॥
सतीश बंसल