गीत/नवगीत

हंसकर तमाम ज़िन्दगी के दर्द सह गये..

हंसकर तमाम ज़िन्दगी के दर्द सह गये।
दिल के सभी अरमां दबे दिल में ही रह गये॥

हमने कभी आंखों से निकलने नही दिये।
आंसू हमारे पलकों में पलकर ही रह गये॥

जिनकी चाह में गुजार दी उम्र तमाम।
हम उनके लिये अजनबी बन कर ही रह गये॥

वो जिन्दगी की दौड में आगे निकल गये।
जो आज में बदला नही हम कल ही रह गये॥

तेरा भी कुछ कसूर नही है ऐ जि़न्दगी।
कठपुतली हम नसीब की बन कर ही रह गये॥

किस से करें शिकायतें इल्ज़ाम किसको दें।
अपनों में भी हम अजनबी बन कर ही रह गये॥

सच ये है कि जीने का सलीका नही आया।
बिन रोशनी के दीप सा जलकर ही रह गये॥

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.