ग़ज़ल
दर्द ज़िन्दगी में माना यार बहुत हैं।
पर हमको उसूलों पे ऐतबार बहुत है॥
ग़म तो बहुत है कि बढ रही हैं रंजिशे।
पर ये सूकूंन है कि अभी प्यार बहुत है॥
वो कह रहे हैं कोई ज़रुरत नही उनको।
पर उनको मेरे साथ की दरकार बहुत है॥
कह देने भर से टूटते नही है ये रिश्ते।
इन कच्ची डोरियों में आबशार बहुत है॥
नाकामियों को अपने सर लेता नही कोई।
पर कामयाबी के यहां हक़दार बहुत हैं॥
दोस्त ज़िन्दगी मे हज़ारों मिलेगें पर।
हों आप जैसे वो भी ये दुष्वार बहुत है॥
सब कहते हैं लालच बुरी बीमारी है बंसल।
पर ग्रस्त इस बीमारी सेे सब यार बहुत है॥
सतीश बंसल