देखकर बहता लहु ये चोटियां हैरान है….
देखकर बहता लहु ये चोटियां हैरान है।
नोच डाली किसने ज़न्नत कौन वो शैतान है॥
इन फ़िज़ाओं में घुला है, क्यूं ये नफरत का जहर।
ढा रहा है इंसान क्यूं इंसांनियत पर ही कहर॥
धर्म तेरे नाम पर कैसा ये कत्लेआम है….
नोच डाली किसने ज़न्नत कौन वो शैतान है…..
रक्त के आंसू लिये बहने लगी है क्यूं चिनाब।
किसने झेलम का ये आंचल तार कर डाला जनाब॥
किसने लूटी भारती की ये अज़ीमोशान है….
नोच डाली किसने ज़न्नत कौन वो शैतान है……
क्यारियां केसर की ख़ाक ए ग़र्द में क्यूं मिल गईं।
कयूं यहां तहज़ीब की आला इमारत हिल गई॥
शोखियां डल की क्यूं मरघट सी हुई वीरान हैं…..
नोच डाली किसने ज़न्नत कौन वो शैतान है…..
इस सियासत के घिनौने रूप को मैं क्या कहूं।
चाह में ताज-ओ-तख्त की तु बहाती है
लहु॥
कौन दुनिया में भला तुझसे बडा बेईमान है…
नोच डाली किसने ज़न्नत कौन वो शैतान है…
सतीश बंसल