संस्मरण

संस्मरण : सुतपा का आत्मदाह

आज पड़ौस में एक लड़के ने खुद को आग लगा कर ख़ुदकुशी कर ली। मेरी आँखों के आगे 41 साल पुरानी घटना आँखों के सामने सहसा कौंध आई ! ऐसा ही 1974 में हमारे घर में रहने वाले किरायेदार की पत्नी ने किया था, जिनके मैं बहुत ही करीब थी, लेकिन उन्हें 90% जली हुई अवस्था में इन आँखों से देखा और वह दृश्य मेरे मानस-पटल पर जैसा का तैसा आज भी अंकित है, और मैं चाह कर भी ताउम्र भुला नहीं सकूँगी !

बात 10 जनवरी 1974 की है, मैं नानी के घर (अलीगढ ) रह कर बी.एस.सी. कर रही थी ! नीचे के तल्ले पर हमारा परिवार रहता था और ऊपर एक किरायेदार श्री सुनील कुमार नंदी, जो मेरे भाई के साथ ग्लेक्सो फैक्ट्री में कार्यरत थे! वो 2 भाई रहते थे, बड़े भाई का नाम अभी याद नहीं आ रहा! कुछ समय बाद दोनों बहन की शादी है, कहकर कलकत्ता चले गए! 15 दिन बाद ही छोटे भाई सुनील की शादी का कार्ड आया !सबको बहुत आश्चर्य हुआ कि गया था बहन की शादी करने और खुद कर रहा है, वो भी बड़े भाई से पहले, लेकिन किसी के व्यक्तिगत मामले में कोई क्या कर सकता है?

एक हफ्ते बाद वो पत्नी सहित वापिस आये! पति-पत्नी में कोई मेल नहीं था, ना देखने में और ना ही शैक्षिक-योग्यता में ही! नाम सुतपा, कालिमा लिए रंग-रूप, हिंदी कम और बांग्ला ज्यादा जानती थी ! बस उनके घुटनो तक लम्बी वेणी मुझे बहुत लुभाती थी, यह और बात है कि मेरी नानी ने उसे देखते ही कहा था कि घुटने से नीचे बाल बहुत अशुभ होते हैं, पर हम सबने इसे उनका वहम ही समझा था !

सुनील, हमेशा हमारे घर अपनी पत्नी के साथ ही आते और दोनों जन बहुत प्रसन्न नज़र आते, जैसा कि हर शादी के बाद नए जोड़े खुश दीखते हैं! बस एक ही बात थोड़ी खटकती थी कि सुतपा को कभी अकेले नीचे नहीं आने दिया जाता था!उसमे भी शक़ का कोई कारण नज़र नहीं आता था क्यों कि नई शादी हुई है, घर संभालना है तिस पर अहिन्दी-भाषी, शायद यही संकोच रहा होगा!

शादी हुई थी जुलाई में, पर बस वो एक बार मायके गयी और वो भी एक हफ्ते को ! तभी सुनील ने मेरी नानी को बताया कि उन्हें जल्दबाज़ी में यह शादी करनी पड़ी क्यों कि आरती (बहन) के ससुराल वाले दहेज़ ज्यादा मांग रहे थे, इनके पास था नहीं तो सुतपा के परिवार से पैसे लेकर जिस-तिस तरह से बहन की शादी की !

एक बात बताना मैं यहाँ भूल गयी कि मैं सुबह 9 बजे अपने कॉलेज जाती थी तो अक्सर सुतपा मुझे लैटर पोस्ट करने को देती थी, यह कह कर कि सुनील सुबह 7 बजे जाते है, तो पोस्ट नहीं कर पाते! जेठ से पोस्ट करने को कहते शर्म आती है, मैं इसे भी स्वाभाविक शर्म समझ उनके पत्र पोस्ट कर देती ! शादी के बाद क्रिसमस पर सुतपा के बहन-बहनोई आये तो ऊपर से कुछ कहासुनी की आवाज़ आयी, पर बांग्ला में होने के कारण समझ कुछ नहीं आयी !

मेरी छठी-इन्द्रिय हमेशा मुझे अशुभ होने की सूचना दे देती है, मैं इस के कारन परेशान भी रहती हूँ,पर इस पर मेरा वश भी नहीं है!

10 जनवरी को घर का फ्यूज़ उड़ गया, मैं उसे ठीक करने को बिजली का पतला तार ब्लेड से छील रही थी कि मेरी तर्जनी में कट लगा, खून बहा तो भाई-भाभी ने अपने कमरे में ही पलंग बिछवा कर सुला लिया ! मेरे पलंग के नीचे, घर का पालतू-कुत्ता “पैंथर” भी सो गया ! रात 3 बजे खूब चीखने की आवाज़ें आयी तो सबकी नींद खुली, तभी सुनील हड़बड़ाते हुए आये कि ऊपर चलो सुतपा ने खुद को आग लगा ली है, भाभी गर्भवती थी, सो मैं और भैया भाग कर गए, हमारे आगे हमारा पैंथर !

वहाँ का दृश्य देख हम सन्न रह गए, 80% जली अवस्था, पलकें, भवें, बाल सब जल कर चिपके हुए, यहाँ तक कि साडी, कपडे जले, हथेली, 2 …एक जली हुई खाल की दूसरी मांस का लोथड़ा भर, उनकी चीखें सुनी नहीं जा रही थीं, सुनील से कारण पूछने पर “मायके वाले बुला नहीं रहे इस लगा ली” कारण कुछ गले से नहीं उतरा! पर वो वक़्त मेडिकल ऐड देने का था, मछली सी तड़पती सुतपा को तुरंत मेडिकल कॉलेज ले जाया गया जहाँ 2 दिन तक तड़प-तड़प कर उसने जान गँवा दी! पुलिस केस बना, मेरी गवाही पिताजी के कमिश्नर होने के कारण घर आ कर ली गयी, पर मैं मन से सुतपा की मौत देख अंदर से टूट गयी थी और मन में इतना डर बैठ गया था शादी व् ससुराल के प्रति, कि मुझे पिताजी अपने साथ झाँसी ले गए!

बहुत बाद में भाभी ने सुतपा की जलने की घटना का पर्दाफाश किया था, जो पुलिस को सुतपा की लिखी एक चिठ्ठी से ज्ञात हुआ था, जिसे सुनकर आप सबका मन भी कांप उठेगा, जो इस प्रकार था——

“माँ -बाबा, आपने मेरी शादी सुनील नंदी के साथ की है, पर यहाँ मैं तीन मर्दों की द्रोपदी बनी हुई हूँ, सुनील, उसके बड़े -छोटे भाई और उसके अविवाहित चाचा। …… मैं गर्भवती हूँ, पर पता नहीं कि यह है किसका? कोई इसे अपनाना नहीं चाहता और मैं इसे गिराना नहीं चाहती, सिर्फ मौत ही आखिरी रास्ता बचा है, आप इसके लिए मुझे क्षमा करियेगा।”

रहस्य खुल चुका था, पर मेरे ज़ेहन में एक सवाल कौंधता रहा है, कि जब सुतपा के बहन-बहनोई आये और सब बात जान ली, तो उसे अपने साथ घर ले क्यों नहीं गए? शादी के बाद क्या बेटी का मोह बिलकुल खत्म हो जाता है? या कि सुतपा ने तलाक़ क्यों नहीं लिया? क्या दो जून कमा कर पेट नहीं भर सकती थी? या जिंदगी का कोई मोल ही नहीं रहा उसके मन में?

— पूर्णिमा शर्मा

पूर्णिमा शर्मा

नाम--पूर्णिमा शर्मा पिता का नाम--श्री राजीव लोचन शर्मा माता का नाम-- श्रीमती राजकुमारी शर्मा शिक्षा--एम ए (हिंदी ),एम एड जन्म--3 अक्टूबर 1952 पता- बी-150,जिगर कॉलोनी,मुरादाबाद (यू पी ) मेल आई डी-- Jun 12 कविता और कहानी लिखने का शौक बचपन से रहा ! कोलेज मैगजीन में प्रकाशित होने के अलावा एक साझा लघुकथा संग्रह अभी इसी वर्ष प्रकाशित हुआ है ,"मुट्ठी भर अक्षर " नाम से !