कहानी

कहानी : माँ

मारिया की आँखें डबडबा आयीं पर दिल पर पत्थर रख कर उन अनमोल मोतियों को बिखरने से जैसे तैसे रोक उसने, पर मन तो अब उड़ कर मॉम के पास जा चूका था, उसे कैसे रोक सकती थी वो ?

मारिया चाह कर भी असली बात उन्हें बता कर अपनी स्नेहमयी माँ को दुखी नहीं कर सकती थी ! वक़्त ने क्या कम थपेड़े दिए मॉम को ? चार बेटियों को जन्म देने के बाद बजाय उनका अच्छा पालन-पोषण करने के, पिता बड़ी बेरुखी से दूसरी औरत को जीवन में स्थान देकर अपनी पत्नी और बेटियों से दरकिनार हो गया वो इंसान उसे कोई अजनबी सा जान पड़ता, अजनबी से तो फिर भी नफ़रत नहीं होती, बस भय होता है पर अपने जन्मदाता से उसे अक्सर नफ़रत ही होती थी जिसने मॉम को पत्थर सा बना दिया और असमय बीमार भी !

मॉम ने इतनी बड़ी कठिनाई का भी जमकर सामना किया और चारों बेटियों को माता-पिता दोनों का प्यार और सुरक्षा दी पर मारिया के भारतीय युवक से शादी करने पर राज़ी होते हुए भी उसके भारत जाने के फैसले से व्यथित थीं और शायद अंदर ही अंदर असुरक्षित होने का भाव भी छुपा हुआ था !
मॉम का पत्र दुबारा गौर से पढ़ा, एक साधारण से वाक्य ने मारिया के अंतर्मन को मथ कर रख दिया था और पलकों में रोकी हुई एक बूँद ने टपक कर कुछ अक्षरों को धुंधला दिया था उन्हें पुनः दृष्टि गढ़ा कर पढ़ा ,” आशा है तुमने अपनी सास से बात करने लायक हिंदी सीख ली होगी ?”

होंटों पर दुःख भरी मुस्कान के साथ ही मुह से आह निकल ही गयी.… उसे भारत आये छः महीने होने को आये पर अभी तक वह टूटी-फूटी हिंदी के दस-बारह वाक्यों से अधिक कुछ भी नहीं सीख सकी थी जिनका उपयोग वह बस नौकर से काम करवाते या चाय, खाने के बारे में करती थी ! सास से तो अभी तक किसी ना किसी की मध्यस्तता में ही वार्तालाप संभव हो पाता और वो भी यदा-कदा, वरना तो सास की एक जोड़ी आँखे उसे हमेशा खुद पर जमी, भेदती सी नज़र आती थीं !

जब मारिया ने राम से शादी का फैसला किया था तो मॉम खुश तो नहीं हुई थीं क्यों कि राम भला लड़का था डॉक्टर था, पर मारिया के भविष्य को लेकर बहुत आशंकित थीं ! दूर देश, अनजान लोग। कैसे भेज दे उसे अपरिचितों के बीच जबकि आज के ज़माने में परिचित भी धोखा देने से बाज नहीं आते ? पर बेटी की जिद के आगे आखिरकार सभी हथियार डाल दिए थे !

पेरिस की तरह ही ठीक उसी वक़्त राम की माँ भी विदेशी बहु के बारे में जान कर उतनी ही चिंतित और आशंकित थीं जितनी मारिया की मॉम ! वो उनकी जिंदगी का सबसे मनहूस दिन था जब राम का पेरिस से आया नीली धारी का लिफाफा उन्होंने बेसब्री से खोला और पत्र पढ़ते ही मानो उन पर गाज गिर पड़ी थी ! लिखा था, ” माँ, मैं तुम्हारे लिए एक बहुत सुन्दर, एकदम परी जैसी बहू ला रहा हूँ अगली पहली तारीख को !”

उनका होनहार बेटा, एक मेम से ब्याह कर रहा है ? ऐसे कैसे अधर्मी बन गया राम ? काश पतिदेव ने उनकी सुनी होती और राम को विदेश पढ़ने जाने की आज्ञा ना देते ! अब क्या मुंह दिखाउंगी सभी रिश्तेदारों और पड़ौसियों को ? कितनी जगहंसाई होगी ? हाय राम !! कितनी तो बेहया होती हैं यह गोरी मेमे, ऊँचे-ऊँचे कपडे पहनती, गिटपिट करती, खीं-खीं करके मर्दों संग हंसती और सिगरेट पीती ! कैसे निभाव होगा उनके बुढ़ापे का इसी सोच में डूबी हुई थीं!

अगले महीने मारिया घर आ चुकी थी ! राम की बहन मीनू के अलावा कोई ख़ास खुश नहीं था पर  “जो हो चुका था उसे ख़ुशी ख़ुशी अपनाना है ” ऐसा राम के पिता का आदेश था सो बहु का स्वागत परंपरागत रीति-रिवाज़ के साथ किया गया ! मारिया खुश कम और डरी हुई ज्यादा थी कि पता नहीं राम का परिवार उसके साथ कैसा व्यवहार करेगा ? उसे अपने पिता याद हो आये , जब वो चार बच्चियों की माँ को छोड़ सकते हैं तो राम ?

शुरू शुरू में रिश्तेदारों और देखने वालों का तांता लगा रहा, लोग आते और मुँह पर तारीफ करते और बाहर जाते ही ……
राम के पिता ने धैर्य से काम लिया ! सुबह की चाय राम, मारिया और राम के पिता एक साथ लेते, मीनू को कॉलेज जाना होता था, पर माँ अपनी पूजा का बहाना बना पूजाघर में खिसक जातीं और कनखियों से तीनों को अंग्रेजी में बतियाते हँसते देख कुढ़ती रहती थीं ! पर धीरे-धीरे आदी होती गयीं, लेकिन राम से पुत्रवत स्नेह रखने के बावजूद वो मारिया को अपना नहीं पा रही थीं ! मारिया भी उनकी नफरत समझने लगी थी कि उसे माँ की रसोई और पूजाघर में नहीं जाना है, उनके खाने-पीने के सामान से दूर रहना है इत्यादि !

आज जब मारिया अपने कमरे से बाहर आई तो उसके हाथ में मॉम का लैटर था और आँखों में आंसू ! माँ से छुपा नहीं सकी! सर्दी की सुखद धूप ने मारिया के भूरे बालों को मूंगे सा चमका दिया था, गोर सुन्दर चेहरे पर दुःख की छाया ने उसे और मासूम बना दिया था ! आज माँ को उसकी जाति याद नहीं रही, उन्हें वो विदेशी बाला, अपने घर में नितांत निरीह, एकाकी, अबोध सी लगी, जो अपने से भिन्न संस्कृति, रहन-सहन वाले देश में सिर्फ उनके पुत्र के प्रेम के सहारे चली आई थी ! माँ का पत्र पाकर कितनी बैचेन और आतुर होगी अपनी माँ से मिलने और अपने देश जाने को ?

वो आज आगे बढ़कर मारिया के समीप आयीं और पूछ बैठीं, “क्या लिखा है तुम्हारी माँ ने पत्र में ?” मीनू कॉलेज से आकर चुपचाप माँ के बदलते रूप को निहार रही थी उसने मारिया को माँ का प्रश्न बताया ! मारिया की नज़र पत्र की अंतिम पंक्ति पर ठहर गयी और उसने वो मीनू को पढ़ा दी ! मारिया के नेत्रों से बाँध तोड़कर आंसू अब अविरल बहने लगे थे !

सास ने उसके मुख को देखा और उसकी मनोव्यथा भांप उनका कठोर ह्रदय भी खंड-खंड द्रवित होने लगा था और उस पल उन्हें मारिया एक मासूम बालिका सी प्रतीत हुई थी जो अपने मनोभावों को छुपाना और कोई द्वेष रखना नहीं जानती थी ! सास ने मारिया के मुख को देख मन का दर्द भांप लिया, उनका कठोर मन सहसा मातृत्व की ऊष्मा से पिघलने लगा और उनके विचारों में परिवर्तन होने लगा…उनके अपने ही प्रश्न खुद-ब-खुद हल होने लगे ! सोचने लगीं आखिर इसमें बहु की गलती ही कहाँ है ? पाश्चात्य संस्कृति क्या अब तो भारत में बड़े शहरों में यही तो हो रहा है…सिर ढकना,बड़ों के समक्ष चुप रहना, धीरे बोलना और अपने मनोभावों को छुपाना सभी तो ख़त्म हो चुका है, मैं कब तक रुढ़िवादी बनी रहूंगी ?उनके कठोर स्वभाव के चलते ही तो मारिया कभी उनके समीप नहीं आ सकी थी, उन्हें देखते ही सहम जाती !

कुछ देर के मंथन के बाद उन्होंने मारिया को देखा और मरिया ने उन्हें, नज़रें मिलीं और उन निगाहों में नफरत की जगह प्यार उमड़ता देख उसे अपनी माँ याद आ गयीं, उसे लगा राम की माँ की भी क्या गलती ? वो भी खुद को इतना बदल चुकीं हैं यही क्या कम उपलब्धि है ? एक क्षण में ही दोनों दिलों का सारा मालिन्य धुल गया और अब उसे भी अपने मन के भाव को छुपाने की आवश्यकता नहीं रही थी, वो रोते हुए सास के सीने से लिपट गयी, उसके मुह से बेसाख्ता निकला,”माँ” …

माँ ने भी गदगद हो उसे दुलारा और स्नेहपूर्ण वाणी में कुछ कहा, मारिया ने प्रश्नवाचक नज़र से ननद को देखा तो मीनू बोली, “माँ कह रही हैं कि आप अपनी मम्मी को लिख दें कि वो आपके हिंदी सीखने की चिंता ना करें क्यों कि आपने हमारी भाषा का सबसे मीठा और मधुर शब्द माँ सीख लिया है!”

मारिया ने पुन सास को पुकारा माँ ….और पहली बार अपनी ससुराल में निश्चिंतता का अनुभव किया जो किसी भी वधु को अपने पतिगृह में मिलता है !

— पूर्णिमा शर्मा

पूर्णिमा शर्मा

नाम--पूर्णिमा शर्मा पिता का नाम--श्री राजीव लोचन शर्मा माता का नाम-- श्रीमती राजकुमारी शर्मा शिक्षा--एम ए (हिंदी ),एम एड जन्म--3 अक्टूबर 1952 पता- बी-150,जिगर कॉलोनी,मुरादाबाद (यू पी ) मेल आई डी-- Jun 12 कविता और कहानी लिखने का शौक बचपन से रहा ! कोलेज मैगजीन में प्रकाशित होने के अलावा एक साझा लघुकथा संग्रह अभी इसी वर्ष प्रकाशित हुआ है ,"मुट्ठी भर अक्षर " नाम से !