बसंत
देखो ये घूम रहा भँवरा घुम्मक्कड़
ये लो! आई हवा, एक नबंर की पियक्कड़
देखो झाड़ियों में जा गिरी पी कर
भँवरा भी जा गिरा ही ही कर
गिरगिट से बड़ा नहीं कोई नाटकबाज़
आ पँहुचा वह भी यहाँ आज
फेंका उस खलनायक ने पाश
फँसा भँवरा! ऐसा होता काश!!
कि वह थोड़ा और हँस पाता
हवा को थोड़ा और गिराता
है सब शैतानों की मंडली जमी
मगर दिखती नहीं पागल मेघा कहीं
शायद पागलखाने पँहुच गई होगी
आएगी बरसात में वह मानसिक रोगी
नारद-विशारद, चुगलखोर भी जगी
येऎऎऎ तितली सबके कान भरने लगी
वोओओओ पड़ोसन डालियों को उसने लड़ा दिया
दोंनो की जलन को बढ़ा दिया
इस लड़ाई में कुछ फल गिर पड़े थे
कुछ धूर्त थे जो उस पेड़ पर चढ़े थे
नीच उतर आईं वो धूर्त गिलहरियाँ
अच्छे से अच्छा फल चुन लिया
देखो इनकी ये धूर्त अदा
उठाएं इस लड़ाई का फ़ायदा
फल उठा कर भाग गई
यह नहीं कोई बात नई
सब शैतान इकट्ठे होते हैं हर वसंत मैं
बुरे नहीं, सब भले हैं, इतना ही है कहना अंत में
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बहुत खूब .
धन्यवाद