कविता

बसंत

देखो ये घूम रहा भँवरा घुम्मक्कड़

ये लो! आई हवा, एक नबंर की पियक्कड़

देखो झाड़ियों में जा गिरी पी कर

भँवरा भी जा गिरा ही ही कर

गिरगिट से बड़ा नहीं कोई नाटकबाज़

आ पँहुचा वह भी यहाँ आज

फेंका उस खलनायक ने पाश

फँसा भँवरा! ऐसा होता काश!!

कि वह थोड़ा और हँस पाता

हवा को थोड़ा और गिराता

है सब शैतानों की मंडली जमी

मगर दिखती नहीं पागल मेघा कहीं

शायद पागलखाने पँहुच गई होगी

आएगी बरसात में वह मानसिक रोगी

 

नारद-विशारद, चुगलखोर भी जगी

येऎऎऎ तितली सबके कान भरने लगी

वोओओओ पड़ोसन डालियों को उसने लड़ा दिया

दोंनो की जलन को बढ़ा दिया

इस लड़ाई में कुछ फल गिर पड़े थे

कुछ धूर्त थे जो उस पेड़ पर चढ़े थे

नीच उतर आईं वो धूर्त गिलहरियाँ

अच्छे से अच्छा फल चुन लिया

देखो इनकी ये धूर्त अदा

उठाएं इस लड़ाई का फ़ायदा

फल उठा कर भाग गई

यह नहीं कोई बात नई

सब शैतान इकट्ठे होते हैं हर वसंत मैं

बुरे नहीं, सब भले हैं, इतना ही है कहना अंत में

*****

*नीतू सिंह

नाम नीतू सिंह ‘रेणुका’ जन्मतिथि 30 जून 1984 साहित्यिक उपलब्धि विश्व हिन्दी सचिवालय, मारिशस द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिन्दी कविता प्रतियोगिता 2011 में प्रथम पुरस्कार। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानी, कविता इत्यादि का प्रकाशन। प्रकाशित रचनाएं ‘मेरा गगन’ नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2013) ‘समुद्र की रेत’ नामक कहानी संग्रह(प्रकाशन वर्ष - 2016), 'मन का मनका फेर' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2017) तथा 'क्योंकि मैं औरत हूँ?' नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) तथा 'सात दिन की माँ तथा अन्य कहानियाँ' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) प्रकाशित। रूचि लिखना और पढ़ना ई-मेल [email protected]

2 thoughts on “बसंत

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब .

    • नीतू सिंह

      धन्यवाद

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