99वें की दौड़
यह 99वें की दौड़ है
सब 100 के पीछे भाग रहे हैं।
दिन को जागने वाले इंसान
उल्लू बनकर जाग रहे हैं।
सब 100 के पीछे भाग रहे हैं।
आधे अंक से पिछड़ती
तो थोड़ा सा रो लेती
चौथाई से पिछड़ी हूँ
जीतती, चौथाई जो ले लेती
कोयल न होकर काग रहे हैं।
सब 100 के पीछे भाग रहे हैं।
अपने अंकों से नहीं दु:खी
उसके नंबर दुखती रग हैं
किस पर चढ़ आगे बढ़ जाऊं
इसी फेर में सारा जग है
हम इंसान भी फुँफकारते नाग रहे हैं।
सब 100 के पीछे भाग रहे हैं।
क्यूँ हम पर लदकर
चलते मात-पिता तनकर
जिनकी ख़ातिर अब हमको
क्यूँ डँसते काल सम बनकर
चैत्र, फाल्गुन, माघ रहे हैं।
सब 100 के पीछे भाग रहे हैं।
गगनचुंभी संस्थानों की माला
क्यूँ नंबरों की खाक़ छान रही हैं
क्यूँ यह मौलिकता को छोड़
रटंत विद्या को मान रही हैं
क्यूँ नंबरों से इनको अनुराग रहे है।
सब 100 के पीछे भाग रहे हैं।
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बहुत खूब , मैं खुद भी तो सौ के पीछे ही भाग रहा हूँ ,यह कड़वा सच ही तो है .
धन्यवाद