कविता

99वें की दौड़

यह 99वें की दौड़ है

सब 100 के पीछे भाग रहे हैं।

दिन को जागने वाले इंसान

उल्लू बनकर जाग रहे हैं।

सब 100 के पीछे भाग रहे हैं।

 

आधे अंक से पिछड़ती

तो थोड़ा सा रो लेती

चौथाई से पिछड़ी हूँ

जीतती, चौथाई जो ले लेती

कोयल न होकर काग रहे हैं।

सब 100 के पीछे भाग रहे हैं।

 

अपने अंकों से नहीं दु:खी

उसके नंबर दुखती रग हैं

किस पर चढ़ आगे बढ़ जाऊं

इसी फेर में सारा जग है

हम इंसान भी फुँफकारते नाग रहे हैं।

सब 100 के पीछे भाग रहे हैं।

 

क्यूँ हम पर लदकर

चलते मात-पिता तनकर

जिनकी ख़ातिर अब हमको

क्यूँ डँसते काल सम बनकर

चैत्र, फाल्गुन, माघ रहे हैं।

सब 100 के पीछे भाग रहे हैं।

 

गगनचुंभी संस्थानों की माला

क्यूँ नंबरों की खाक़ छान रही हैं

क्यूँ यह मौलिकता को छोड़

रटंत विद्या को मान रही हैं

क्यूँ नंबरों से इनको अनुराग रहे है।

सब 100 के पीछे भाग रहे हैं।

 

*****

*नीतू सिंह

नाम नीतू सिंह ‘रेणुका’ जन्मतिथि 30 जून 1984 साहित्यिक उपलब्धि विश्व हिन्दी सचिवालय, मारिशस द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिन्दी कविता प्रतियोगिता 2011 में प्रथम पुरस्कार। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानी, कविता इत्यादि का प्रकाशन। प्रकाशित रचनाएं ‘मेरा गगन’ नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2013) ‘समुद्र की रेत’ नामक कहानी संग्रह(प्रकाशन वर्ष - 2016), 'मन का मनका फेर' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2017) तथा 'क्योंकि मैं औरत हूँ?' नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) तथा 'सात दिन की माँ तथा अन्य कहानियाँ' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) प्रकाशित। रूचि लिखना और पढ़ना ई-मेल [email protected]

2 thoughts on “99वें की दौड़

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब , मैं खुद भी तो सौ के पीछे ही भाग रहा हूँ ,यह कड़वा सच ही तो है .

    • नीतू सिंह

      धन्यवाद

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