कविता

दहेज के लिए

मुट्ठियों में बंद लकीरों से भी
किस्मत न बदल पाई है
फिर जली है ,कहीं कोई अभागिन
किसी सुहागिन ने ,यह ख़बर सुनाई है |
एक दिन मेरी बेटी ने मुझसे पूछा —
अख़बारों में कितनी बुरी ख़बरें आती हैं
मम्मी,ये लड़कियाँ जलकर क्यों मर जाती हैं ?
बेटी का मासूम प्रश्न मुझे हिला गया
मेरा मन तड़पा गया |
मैं सोचने लगी —
देश में एक ही आवाज़ आती है,
जो मेरे मैं-मस्तिष्क में
आँधी–तूफ़ान मचा जाती है |
मैं सोचती हूँ —
क्यों होता है नारियों का संहार
क्यों नहीं कर पातीं, मेरी बहनें प्रतिकार
क्यों उनके गुणों को नहीं गिना जाता है
क्यों दहेज़-लोभियों को तरस नहीं आता है ?
क्यों आदमी का दिमाग चढ़ जाता है
क्यों वह दहेज़ के लिए अड़ जाता है
क्यों माँगता है आदमी दहेज़ रुपी भीख
क्यों दहेज़ के अभाव में निकलती बेटी की चीख ?
क्यों दहेज़ के लिए, नारी को सताया जाता है
क्यों उसे ज़िंदा जलाया जाता है
क्यों उसे फाँसी पर चढ़ाया जाता है
और फिर इसे, आत्महत्या का मामला बनाया जाता है |
याद रखिए,
यदि दहेज़-लोभी राक्षसों के द्वारा
नारी को ज़िंदा जलाना, बंद नहीं किया जाएगा
तो उस घर में पैसा तो होगा
पर,सुख कभी नहीं आएगा ,
सुख कभी नहीं आएगा ,
सुख कभी नहीं आएगा ,
क्योंकि सुख को तो वही घर भाता है
जहाँ नारी को इज़्ज़त से रखा जाता है ,और फिर
नारी संसार को
ईश्वर का वरदान है ,
नारी गुणों की खान है |
नारी सीता है,सावित्री है
दुर्गा है, देवी है
नूरजहाँ है ,रज़िया सुल्तान है
इतिहास गवाह है कि
नारी पुरुष से महान है |
याद रखिए,
नारी आपके आँगन की तुलसी है |
याद रखिए ,
नारी आपके आँगन की तुलसी है
और जो आदमी,आँगन की तुलसी को जलाता है
उसका घर,नरक बन जाता है |
इसलिए मैं कहती हूँ कि
मन से लोभ का परदा हटाइए
मात्र दहेज़ के लिए
सीता-सावित्री जैसी
मेरी बहनों को ,
मत जलाइए ,
मत जलाइए ,
मत जलाइए |

रवि रश्मि ‘अनुभूति ‘ 

One thought on “दहेज के लिए

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    सुन्दर रचनाएं .१९६७ में मैंने दस ब्रातिओं और बगैर दान दहेज़ के शादी करवाई थी ,आज २००१६ हो गिया है ,लगता है कुछ लोग ज़िआदा ही लालची और कमीने हो गए हैं .

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