आत्मसम्मान
बाहर इतनी सर्दी थी कि हाथ पैर सुन्न हो रहे थे मगर शोभा तो डर से पसीना पसीना हो रही थी। आज तो उसे लग रहा था कि मालकिन उसे जाने क्या कहेगी।यूं तो जब से शोभा प्रज्ञा के घर पे काम कर रही थी। बहुत संभल कर काम करती थी। भग्वान का दिया हद से ज्यादा था प्रज्ञा के पास पर कमी थी तो सोच की और दया की। आज तक शोभा से एक दो बार कांच के गिलास टूटे थे और प्रज्ञा ने उसे बहुत बाते सुनाई थी। शोभा चुपचाप सुनकर फिर काम पर लग जाती थी वो बहुत ही शान्त स्वभाव की थी। पर आज तो ठिठुरती ठंड थी और उसके हाथ से काम करते करते नए सैट का बोरोसिल का कप फिसल कर टूट गया शोभा बहुत डर गई थी कि आज जाने क्या होगा और ठिठुरती सर्दी में उसे पसीने आ रहे थे। प्रज्ञा जल्दी किचन में आई और जो उसके मुहँ में आया बोलने लगी शोभा उम्र में प्रज्ञा की माँ के बराबर थी। प्रज्ञा ने आज तो हद ही कर दी थी उसने शोभा से कहा कहाँ ध्यान है तेरा तूने मेरा सैट खराब कर दिया अब ला कर दे मुझे ऐसा ही सैट, नहीं तो तन्ख्वाह काट दूं।काम नहीं होता तो छुट्टी लेकर घर बैठ तुम लोगों से तो बात करना भी बेकार है और जाने क्या क्या वो कह गई। शोभा ने पलट कर कोई जबाब नहीं दिया पर उसकी आँखों भर गई थी। जिस मजबूरी की वजह से वो काम करती थी आज वो भी फीकी नज़र आ रही थी इसके आगे शोभा के आत्मसम्मान को बहुत ठेस पहुंची थी मगर बच्चो का पेट पालने के लिए वो आत्मसम्मान का क्या करती। वो चुपचाप वहाँ से चली गई।।।
कामनी गुप्ता***
मार्मिक .
हौंसला बढ़ाने के लिए आपका धन्यवाद सर जी