कविता

हिंदी की दुर्दशा

हिन्दी ही इस जहाँ के आगे

रही हिन्द की भाषा।

सच्चा हिन्दुस्तानी ही हरपल

इसका साथ निभाता।

आज जमाना बदल गया

ये अन्धकार में खोयी है ।

जो भारत का गौरव थी

वो देख आइना रोइ है ।

जो हिन्दी अब बोले कोई

मानो निपट गवार हुआ ।

ये होना ही था सबके सर

अन्गेजी भूत सवार हुआ ।

देख यही अब लगता है

हिंदी का सूरज अस्त हुआ ।

जब अंग्रेजी की बीमारी से

पूरा भारत ग्रस्त हुआ ।

स्कूलों से लेकर घर तक

बस अंग्रेजी ही चलती है ।

जोर विदेशी भाषा का है

हिंदी घर में जलती है ।

हिंदी दिवस मनाने को ही

बस स्कूल सजाते हैं ।

बाकी दिन सब लोग

मजे में अंग्रेजी अलख जगाते हैं ।
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अनुपमा दीक्षित मयंक
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अनुपमा दीक्षित भारद्वाज

नाम - अनुपमा दीक्षित भारद्वाज पिता - जय प्रकाश दीक्षित पता - एल.आइ.जी. ७२७ सेक्टर डी कालिन्दी बिहार जिला - आगरा उ.प्र. पिन - २८२००६ जन्म तिथि - ०९/०४/१९९२ मो.- ७५३५०९४११९ सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन छन्दयुक्त एवं छन्दबद्ध रचनाएं देश विदेश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रो एवं पत्रिकाओ मे रचनाएं प्रकाशित। शिक्षा - परास्नातक ( बीज विग्यान एवं प्रोद्योगिकी ) बी. एड ईमेल - adixit973@gmail.com