हिंदी की दुर्दशा
हिन्दी ही इस जहाँ के आगे
रही हिन्द की भाषा।
सच्चा हिन्दुस्तानी ही हरपल
इसका साथ निभाता।
आज जमाना बदल गया
ये अन्धकार में खोयी है ।
जो भारत का गौरव थी
वो देख आइना रोइ है ।
जो हिन्दी अब बोले कोई
मानो निपट गवार हुआ ।
ये होना ही था सबके सर
अन्गेजी भूत सवार हुआ ।
देख यही अब लगता है
हिंदी का सूरज अस्त हुआ ।
जब अंग्रेजी की बीमारी से
पूरा भारत ग्रस्त हुआ ।
स्कूलों से लेकर घर तक
बस अंग्रेजी ही चलती है ।
जोर विदेशी भाषा का है
हिंदी घर में जलती है ।
हिंदी दिवस मनाने को ही
बस स्कूल सजाते हैं ।
बाकी दिन सब लोग
मजे में अंग्रेजी अलख जगाते हैं ।
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अनुपमा दीक्षित मयंक
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